स्व. डॉ.रमेश सिंह की पुण्यतिथि पर रोहित सिंह ने लोहिया और मेडिकल कॉलेज में नि:शक्त तीमारदारों की भोजन सेवा

सेवा धर्म की पावन मंदाकिनी सबका मंगल करती है। यह लोक साधना का सहज संचरण है। दरिद्र नारायण की शुश्रुषा से बढ़कर कोई तप नहीं है। सेवा मानवीय गुण है, निष्काम सेवा का फल आंनद है। तुलसी दास जी ने कहा है कि –

सिर भर जाऊ उचित यह मोरा,सबते सेवक धरम कठोरा’- रामचरितमानस

आज गोलोकवासी स्मृति शेष स्वर्गीय डॉक्टर रमेश सिंह जी के पुण्य तिथि के अवसर पर श्री रोहित सिंह जी एवं आपके पूरे परिवार की तरफ से पूरी श्रद्धा और तन्मयता से मेडिकल कॉलेज एवं लोहिया हॉस्पिटल, लखनऊ में नि:शक्त तीमारदारों की भोजन सेवा कर उन्हे प्रसाद वितरण किया गया। इस अवसर पर आपका पूरा परिवार करुणामय हृदय से नि:शक्त तीमारदारों की भोजन सेवा करते हुए भाव विभोर हो गया, आप लोगो का सेवा भाव यह प्रतिबिम्बित कर रहा था कि नर सेवा ही नारायण सेवा है।

सेवा परमो धर्मा के विचर से अनुप्राणित हो श्री रोहित सिंह जी ने अपने विचारो को व्यक्त करते हुए कहा कि अन्न दान श्रेष्ठ दान इसलिए है, क्योकि अन्न से ही शरीर चलता है। अन्न ही जीवन का आधार है। अन्न प्राण है, इसलिए इसका दान प्राणदान के सामान है। यह सभी दानो में श्रेष्ठ और ज्यादा फल देने वाला माना गया है।

यह धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग भी माना गया है। भोजन सेवा से अभिभूत होकर आप लोगो ने कहा कि जिन वस्तुओं को हम खुद को खिलाने के लिए उपयोग करते हैं.वे ब्रम्हा हैं। भोजन ही ब्रम्हा है। भूख की आग में हम ब्रम्हा महसूस करते हैं और भोजन खाने और पचाने की क्रिया ब्रम्हा की क्रिया है। अंत में प्राप्त परिणाम ब्रम्हा है। अतः नर सेवा ही नारायण सेवा है।

इस अवसर पर विजयश्री फाउन्डेशन , प्रसादम सेवा के संस्थापक फ़ूडमैन विशाल सिंह ने स्वर्गीय डॉक्टर रमेश सिंह जी की पुण्य आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि, निष्काम सेवा के इस कंटकाकीर्ण मार्ग पर कोई विरला व्यक्ति ही चल सकता है ,और प्रभु के इस मार्ग पर जो चलता है वह व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व बन जाता है।

निष्काम सेवा का अधिष्ठान यह भावना है कि संसार जगतनियंता की लीलास्थली है जिसमे वह परमप्रभु स्वयं विविधि रूपों में अपने खेल रचता है और स्वयं ही खेलता है ।उस महा प्रभु से साक्षात्कार करने का एक साधन तन, मन, धन, पद, प्रतिष्ठा,मोह, ममता और अहंकार का पूर्ण समर्पण है।

तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा की भावना से समस्त सांसारिक व्यवहार परमात्मा के है, परमात्मा के लिये है, हम निमित्त मात्र हैं, कठपुतली की भाँति उनके खेल के साधन है। वास्तव में भूखे को भोजन देना, प्यासे को पानी पिलाना ही सच्ची मानवता है। समाज और संसार में नर सेवा ही नारायण सेवा है। यही पुण्यों का फिक्स डिपोजिट है ।

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