लखनऊ। बसपा की अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुसूचित जातियों-जनजातियों (एससी-एसटी) के आरक्षण में उप-वर्गीकरण के मामले में सपा और कांग्रेस पर चुप्पी साधने का आरोप लगाते हुए शनिवार को कहा कि इन दलों की सोच आरक्षण विरोधी है।
मायावती का यह बयान सपा प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा उन पर भाजपा के एक विधायक की आपत्तिजनक टिप्प्णी के खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त किए जाने के कुछ घंटों बाद ही सामने आया है। यादव ने मायावती के खिलाफ भाजपा विधायक की आपत्तिजनक टिप्प्णी पर नाराजगी व्यक्त करते हुए शुक्रवार की देर रात सोशल मीडिया मंच एक्स पर कहा कि सार्वजनिक रूप से दिये गये इस वक्तव्य के लिए भाजपा विधायक पर मानहानि का मुकदमा होना चाहिए।
बसपा प्रमुख ने एक्स पर अपनी एक पोस्ट में कहा, सपा व कांग्रेस आदि ये (दल) एससी/एसटी आरक्षण के समर्थन में तो अपने स्वार्थ एवं मजबूरी के कारण बोलते हैं, किंतु एससीाएसटी आरक्षण के वर्गीकरण व क्रीमी लेयर को लेकर उच्चतम न्यायालय के एक अगस्त 2024 के निर्णय में अभी तक चुप्पी साधे हुए हैं जो इनकी आरक्षण विरोधी सोच को दर्शाता है। ऐसे में सजग रहना जरूरी है।
मायावती ने कहा, सपा व कांग्रेस आदि की चाल, चरित्र व चेहरा हमेशा एससी/एसटी विरोधी रहा है। इस क्रम में भारत बंद को सक्रिय समर्थन नहीं देना भी यह साबित करता है। वैसे भी आरक्षण संबंधी इनके बयानों से यह स्पष्ट नहीं है कि ये उच्चतम न्यायालय के फैसले के पक्ष में हैं या विरोध में। ऐसी भ्रम की स्थिति क्यों? उन्होंने कहा कि सपा, कांग्रेस व अन्य दल आरक्षण के विरुद्ध समान सोच वाले प्रतीत होते हैं और ऐसे में केवल एससीाएसटी ही नहीं, बल्कि अन्य ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को भी आरक्षण व संविधान की रक्षा तथा जातीय जनगणना की लड़ाई अपने ही बल पर बड़ी समझदारी से लड़नी है।
उच्चतम न्यायालय ने एक अगस्त को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों को आरक्षण प्रदान किया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं। हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया था कि राज्यों को पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के मात्रात्मक और प्रदर्शन योज्ञ आंकड़ों के आधार पर उप-वर्गीकरण करना होगा, न कि मर्जी और राजनीतिक लाभै के आधार पर।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:। के बहुमत के निर्णय के जरिये ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार मामले में शीर्ष अदालत की पांच-सदस्यीय पीठ के 2004 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों (एससी) के किसी उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं। न्यायालय द्वारा अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण के संबंध में दिए गए फैसले के खिलाफ कुछ दलित और आदिवासी समूहों ने 21 अगस्त को एक दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया था।