लखनऊ । बृजेश मिश्रा ने अपने पूरे परिवार के साथ अपने बाबा व दादी, माता जी एवं नानी जी की पुण्यस्मृति में विजय श्री फाउंडेशन के तत्वाधान में शुक्रवार के दिन को सेवा दिवस के रूप में मानते हुए मेडिकल कॉलेज , लखनऊ में कैंसर एवम असाध्य रोगियों के निःसक्त तिमारदारो की भोजन की सेवा कर दरिद्र नारायण की सेवा के माध्यम से नर सेवा ही नारायण सेवा है, के ध्येय वाक्य को चरितार्थ किया।
साथियों ,सेवा वह है जो किसी दूसरे को सुख देने के लिये निष्प्रह और निष्काम भाव से की जाती है । मन से सबका हित चाहना ही सेवा है । ऐसा तभी सम्भव है जब हम सबमे स्वयं को देखे । ” आत्मवत् सर्वभूतेषु ” की भावना से दूसरे का सुख दुःख अपना सुख दुःख हो जाता है । पर की भेद दृष्टि ही नही रहती ,इस अवस्था में हमारी समस्त चेष्टाएँ सेवा रूप हो जाती है और किसी की भी सेवा स्वयं सेवा होती है । यह मनुष्य को आत्मतुष्टि प्रदान करती है ।इसमें कृतिमता, दिखावा, आडम्बर या अहंकार आदि के लिये कोई स्थान नही होता है । इस प्रकार की सेवा पूर्णतः निष्काम होती है ।
फूडमैन विशाल सिंह ने बृजेश मिश्रा जी के समस्त पितरों को पूरे प्रसादम परिवार की तरफ़ से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की । उन्होंने कहा कि मित्रों ,जीवन में भूख ही सबसे बड़ा दुख हैं, रोग हैं, तड़प हैं ,इसलिए प्रसाद सेवा के पुण्य कार्य में श्री वृजेश मिश्रा जी ने प्रतिभाग करते हुए गरीब , असह्य , भूख से तडफते और करुणा कलित चेहरों पर मुस्कान लाने का जो प्रयास किया है , इसके लिए आपके पूरे परिवार को मेरा कोटि-कोटि वंदन एवं मैं मां अन्नपूर्णा एवं माता लक्ष्मी से प्रार्थना करता हू कि आप और आपका परिवार हमेशा धन- धान्य से परिपूर्ण रहे , आप इसी तरह से मुस्कराते हुए लोगो की सेवा करे । यही पुण्यों का फिक्स डिपॉज़िट है ।
भारतीय धर्म में दान का अत्यधिक महत्व है। छोटे से लेकर बड़े तक- संकल्प छोड़ने से लेकर देव दर्शन तक कोई काम दान के बिना आरम्भ नहीं होता। दान-पुण्य यह दोनों शब्द एक तरह से पर्यायवाची बन गये हैं। दान में ही पुण्य है, पुण्य तभी होगा जब दान किया जाय। यह मान्यता सिद्धांततः ठीक है। भगवान किसी की आन्तरिक उदारता देख कर ही प्रसन्न होते हैं। आत्मा का साक्षात्कार सद्गुणों के बिना सम्भव नहीं। उत्कृष्टता और उदारता का समन्वय सेवा धर्म में है। दान सेवा का ही एक छोटा रूप है।
[फ़ूडमैन विशाल सिंह ]