स्वच्छता ही सेवा है…पढ़ें शैलेंद्र क र विमल की लिखी कविता

सपने सभी देखते हैं,
सपने साकार करने होते हैं,
सपने धरातल पर उतारने के लिए आकुल हैं सभी,
सपनों को मंजिल पहुंचाने वाले विरले ही होते हैं।

बचपन में सिखाया जाता है,
स्वच्छता का महत्त्व
बताया जाता है,
बीमारियों को यदि
दूर रखना है तो,
हाथ धोकर खाना व
खाकर फिर हाथ धोना
दोहराया जाता है।

पहली बार स्वच्छता की
बात हुई है,
इतिहास में स्वच्छता महात्मा गांधी से जुड़
गयी है,
समाज में हर किसी के
योगदान की जरूरत आन पड़ी है,
जनसंख्या बढ़ जाने के
बाद हुई स्वच्छता की चुनौती सबसे कठिन है।

महात्मा गांधी के समग्र स्वच्छता के आह्वान को
हम सभी अपनाएं,
अपने आस पास स्वच्छता खुद से सुनिश्चित करवाएं,
स्वच्छता की आदत डाल कर जीवनशैली
बदलें,
अपनी गली,अपने शहर
और अपने राष्ट्र की स्वच्छता की श्रैणी बदलें।

स्वच्छता अभियान में हमें उन कोनों को पकड़ना है,
जिन्हें हमनें आंखें मूंद
करके छोड़ रखा है,
हमें दीवाली या किसी
अन्य उत्सव की प्रतीक्षा
नहीं करनी है,
हमें प्रतिदिन स्वच्छता की समीक्षा करनी है व
स्वच्छता में गति पकड़नी है।

शैलेंद्र क र विमल।

लेखक

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