‘मिश्रा परिवार’ ने स्वर्गीय डी पी मिश्रा की स्मृति दिवस पर अर्पित की भावपूर्ण श्रद्धांजलि

लखनऊ। विजय श्री फाउंडेशन, प्रसादम सेवा के तत्वाधान में रेखा मिश्रा एवं ज्ञान प्रकाश मिश्रा ने अपने पूरे मिश्रा परिवार के साथ स्वर्गीय डी पी मिश्रा की स्मृति में प्रसादम सेवा के लोहिया हॉस्पिटल प्रांगण में कैंसर एवं असाध्य रोगो से पीड़ित मरीजों के निःशक्त तीमारदारों की भरपेट स्वादिष्ट भोजन द्वारा सेवा करके अपने परिजनों को याद किया एवं उनके द्वारा स्थापित सामाजिक एवं पारिवारिक आदर्शों को अंगीकार करते हुए उन पर आजीवन चलने का शपथ लिया।

मित्रों ,स्वर्गीय डी पी मिश्रा की स्मृति के अवसर पर रेखा मिश्रा का मानना है कि सेवा से बड़ा कोई परोपकार इस विश्व में नहीं है, जिसे मानव सहजता से अपने जीवन में अंगीकार कर सकता है। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर हमारे अंतिम सेवा काल तक सेवा ही एक मात्र ऐसा आभूषण है, जो हमारे जीवन को सार्थक सिद्ध करने में अहम भूमिका निभाता है। बिना सेवा भाव विकसित किए मनुष्य जीवन को सफल नहीं बना सकता। हम सभी को चाहिए कि सेवा के इस महत्व को समझें व दूसरों को भी इस ओर जागरूक करने की पहल करें।

मित्रों , हम सौभाग्यशाली हैं कि हमे भगवान ने नि:शक्त तीमारदारों की सेवा के लिए सक्षम बनाया। हमें विश्वास है कि नर सेवा नारायण सेवा के लिए हमने जिन लोगों को भोजन प्रसाद वितरण किया है , इसी में से कोई न कोई परमात्मा होगा जो हम सबका कल्याण करेंगे। क्योंकिअन्नं ब्रह्मा रसो विष्णुर्भोक्ता देवो महेश्वरः अर्थात् अन्न ब्रह्म है, रस विष्णु है और खाने वाले महेश्वर हैं।

इस दौरान फूडमैन विशाल सिंह ने विजय श्री फाउंडेशन, प्रसादम सेवा की तरफ़ से स्वर्गीय डी पी मिश्रा को श्रद्धा सुमन अर्पित की। विशाल सिंह ने कहा कि भाइयों , जीवन में भूख ही सबसे बड़ा दुख हैं, रोग हैं, तड़प हैं ,इसलिए प्रसाद सेवा के पुण्य कार्य में श्रीमती रेखा मिश्रा जी ने पूरे मिश्रा परिवार के साथ प्रतिभाग करते हुए गरीब , असह्य , भूख से तडपतें और करुणा कलित चेहरों पर मुस्कान लाने का जो प्रयास किया है , इसके लिए आपके पूरे परिवार को मेरा कोटि-कोटि वंदन एवं मैं मां अन्नपूर्णा एवं माता लक्ष्मी से प्रार्थना करता हूं कि आपका पूरा परिवार हमेशा धन- धान्य से परिपूर्ण रहे , आप सब इसी तरह से मुस्कराते हुए लोगो की सेवा करें, यही पुण्यों का फिक्स डिपॉज़िट है।

युग-युगांतर से प्रचलित वाणी सेवा परमो धर्म: को आत्मसात कर चरितार्थ करने वालों को ही भविष्य में महामानव की उपाधि मिलती है। राष्ट्र सेवा या माता-पिता संग मानव जाति या जीव-जंतुओं की सेवा हो सभी में धर्म की प्राप्ति के साथ-साथ लोगों को आत्म संतुष्टि के बीच जीवन भी सफल होता है।

[ फ़ूडमैन विशाल सिंह ]

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