परमात्मा की कृपा से जलते हैं सेवा के दीप…लेखक: फूडमैन विशाल सिंह

सेवा, मानव जीवन का सबसे पवित्र कार्य है। यह न केवल दूसरों के जीवन को सुधारता है, बल्कि स्वयं के आत्मिक उत्थान का माध्यम भी बनता है। परंतु, इस कलयुग रूपी जीवन में सेवा के मार्ग पर चलना आसान नहीं है। जिस व्यक्ति पर परमपिता परमात्मा की कृपा होती है, वही इस कठिन मार्ग पर स्थिर रह पाता है।

कलयुग: सेवा के मार्ग में बाधा

कलयुग, एक ऐसा समय है जब भौतिकता और स्वार्थ ने मानवता को ढक लिया है। यह समय मनुष्य के विचारों में भ्रम पैदा करता है। जब आप सेवा का विचार करते हैं, तो यह भ्रमित करने वाले विचार आपके मन में जगह बना लेते हैं:

“क्या यह मेरे बस का है?”

“मेरे पास समय नहीं है।”

“दूसरे लोग क्यों नहीं करते?”

यह विचार कलयुग रूपी राक्षस की देन हैं, जो हमें सेवा के मार्ग से भटकाने का प्रयास करते हैं। यह कभी बाहरी व्यक्तियों के रूप में तो कभी हमारे अंदर के आलस्य और स्वार्थ के रूप में प्रकट होते हैं।

परमात्मा की कृपा: सेवा का दीप जलाने की शक्ति

सेवा के दीप वही व्यक्ति जला सकता है, जिसके मन में परमात्मा की कृपा से सद्बुद्धि और सहनशीलता का संचार हुआ हो। जब परमात्मा हमें आशीर्वाद देते हैं, तो हमारे मन में:

  • सकारात्मकता का जन्म होता है।
  • दूसरों के दर्द को समझने की संवेदनशीलता आती है।
  • संकल्प मजबूत होता है।

ईश्वर की कृपा हमें मानसिक भ्रम से मुक्त करती है और सही दिशा में चलने की प्रेरणा देती है।

सेवा: एक आत्मिक यज्ञ

सेवा करना आत्मा को पवित्र करने जैसा है। यह हमें सांसारिक बंधनों से मुक्त कर आत्मिक संतोष देता है। परंतु, यह तभी संभव है जब हम अपनी इच्छाओं, भय और आलस्य को पीछे छोड़कर, परमात्मा पर विश्वास रखते हुए आगे बढ़ें।

सेवा के दीप जलाने का मार्ग

  • ईश्वर पर विश्वास रखें: जब भी आपके मन में सेवा का विचार आए, उसे तुरंत क्रियान्वित करें।
  • समर्पण का भाव रखें: सेवा करते समय अपेक्षा न करें।
  • आध्यात्मिकता को अपनाएं: ध्यान, प्रार्थना, और अच्छे कर्मों के माध्यम से अपने मन को कलयुग के प्रभाव से बचाएं।
  • प्रेरणा लें: अपने आस-पास ऐसे लोगों को देखें, जो सेवा में लगे हैं। उनके अनुभवों से सीखें।

कलयुग से लड़ने की ताकत

सेवा के मार्ग पर चलना आसान नहीं है, लेकिन यह संभव है। हर बार जब आपको लगे कि कोई चीज़ आपको सेवा से रोक रही है, तो याद रखें कि यह एक परीक्षा है।”सेवा वही कर पाता है, जो अपने स्वार्थ और भ्रम को पीछे छोड़कर दूसरों की भलाई के लिए समर्पित होता है।”

निष्कर्ष : परमात्मा की कृपा से ही सेवा के दीप जलते हैं। कलयुग के प्रभाव से बचने के लिए हमें अपने मन और आत्मा को ईश्वर के चरणों में समर्पित करना होगा। जब ईश्वर की कृपा हमारे जीवन में आएगी, तभी हम सच्चे अर्थों में दूसरों की सेवा कर पाएंगे और इस जीवन को सार्थक बना पाएंगे। “सेवा, परमात्मा की पूजा का सबसे शुद्ध रूप है। इसे निभाने का सौभाग्य उन्हीं को मिलता है, जिन पर परमात्मा का आशीर्वाद होता है।

लेखक: फूडमैन विशाल सिंह

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