लखनऊ I मित्रों जैसा कि कहा गया है कि ,सेवा मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है। सेवा ही उसके जीवन का आधार है। गरीबों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है, की विचारधारा से ओत -प्रोत , श्री शेखर सिंह जी ने अपने पूरे परिवार के साथ लोहिया इंस्टीयूट में निःसक्त तीमारदारों की भोजन सेवा कर गरीबों ,असहायों एवं भूखे व्यक्तियो को भोजन कराकर अन्न दान के माध्यम से श्रेष्ठ दान करते हुए “नर सेवा नारायण सेवा” के भाव को वास्तविकता के धरातल पर चरितार्थ किया।
श्री शेखर सिंह जी ने सेवा भाव के विचार को पुष्पित एवं पल्लवित करते हुए कहा कि भूख के समान कोई दुःख नहीं क्षुधा के समान कोई रोग नहीं,अरोग्यता के समान कोई सुख नहीं । इसलिए अन्न दान बहुत पुण्य का कार्य है । अन्न दान करने वाला प्राण दाता होता है । सेवा परमो धर्मा के विचर से अनुप्राणित हो अपने विचारो को व्यक्त करते हुए आपने कहा कि अन्न दान श्रेष्ठ दान इसलिए है, क्योकि अन्न से ही शरीर चलता है।
अन्न ही जीवन का आधार है। अन्न प्राण है, इसलिए इसका दान प्राणदान के सामान है। यह सभी दानो में श्रेष्ठ और ज्यादा फल देने वाला माना गया है। यह धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग भी माना गया है। भोजन सेवा से अभिभूत होकर आप लोगो ने कहा कि जिन वस्तुओं को हम खुद को खिलाने के लिए उपयोग करते हैं.वे ब्रम्हा हैं। भोजन ही ब्रम्हा है। भूख की आग में हम ब्रम्हा महसूस करते हैं और भोजन खाने और पचाने की क्रिया ब्रम्हा की क्रिया है। अंत में प्राप्त परिणाम ब्रम्हा है। अतः नर सेवा ही नारायण सेवा है।
इस अवसर पर विजय श्री फाउंडेशन प्रसादम सेवा के संस्थापक फ़ूडमैन विशाल सिंह ने श्री शेखर सिंह जी को शुभ कामना संदेश देते हुए कहा कि वर्तमान के इस भौतिकवादी समाज में व्यक्ति के अंदर करुणा , दया , सहानुभूति एवम समानुभूति जैसे सात्विक भावों का जाग्रत होना जरूरी है।
जैसा कि स्वामी विवेकानंद जी ने कहा भी है कि, अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा , ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाए उतना ही बेहतर है।कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि, समाज में दीन -हीन व्यक्तियों को देखकर आपके हृदय में करुणा का भाव अवश्य जाग्रत होना चाहिए। क्योंकि करुणा, दया ,सहानुभूति एवम समानुभूति जैसे सात्विक भावों से ही एक सहिष्णु एवं रचनात्मक समाज की स्थापना की जा सकती है।
फ़ूडमैन ने कहा कि शिव पुराण में अन्न दान के महत्व को बताते हुए कहा गया है कि. जिसके अन्न को खाकर मनुष्य जब तक कथा श्रवण आदि संदर्भ पालन करता है। उतने समय तक उसके किये हुए पुण्य फल आधा भाग दाता को मिल जाता है। इसमें कोई शक नहीं। इसलिए सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। अतः प्रसादम सेवा में राशन की आहुति देकर परलोक में अपने पुण्यो का फ़िस्क़ डिपॉजिट करे।