मित्रों, आज सेवादार साथी श्री जय अग्रवाल जी [ ज्ञान दूध ] ने सेवा धर्म की पावन मंदाकिनी में डुबकी लगाते हुए मेडिकल कॉलेज , लखनऊ में कैंसर एवम असाध्य रोगियों के निःसक्त तिमारदारो की भोजन सेवा कर दरिद्र नारायण की सेवा के माध्यम से नर सेवा ही नारायण सेवा है, के ध्येय वाक्य को चरितार्थ किया।
मित्रों ,सेवा से बड़ा कोई परोपकार इस विश्व में नहीं है, जिसे मानव सहजता से अपने जीवन में अंगीकार कर सकता है। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर हमारे अंतिम सेवा काल तक सेवा ही एक मात्र ऐसा आभूषण है, जो हमारे जीवन को सार्थक सिद्ध करने में अहम भूमिका निभाता है। बिना सेवा भाव विकसित किए मनुष्य जीवन को सफल नहीं बना सकता। हम सभी को चाहिए कि सेवा के इस महत्व को समझें व दूसरों को भी इस ओर जागरूक करने की पहल करें।
सेवा भाव के इसी महत्ता को अंगीकार करते हुए श्री जय अग्रवाल जी का मानना है कि भक्ति और सेवा का भाव अविभाज्य हैं। सेवा वह है जो किसी दूसरे को सुख देने के लिये निष्प्रह और निष्काम भाव से की जाती है । मन से सबका हित चाहना ही सेवा है । ऐसा तभी सम्भव है जब हम सबमे स्वयं को देखे । ” आत्मवत् सर्वभूतेषु ” की भावना से दूसरे का सुख दुःख अपना सुख दुःख हो जाता है । पर की भेद दृष्टि ही नही रहती ,इस अवस्था में हमारी समस्त चेष्टाएँ सेवा रूप हो जाती है और किसी की भी सेवा स्वयं सेवा होती है । यह मनुष्य को आत्मतुष्टि प्रदान करती है ।इसमें कृतिमता, दिखावा, आडम्बर या अहंकार आदि के लिये कोई स्थान नही होता है । इस प्रकार की सेवा पूर्णतः निष्काम होती है ।
विजय श्री फाउंडेशन के संस्थापक फूडमैन विशाल सिंह ने श्री जय अग्रवाल जी को प्रसादम सेवा यज्ञ में अन्न की आहुति देने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि विनम्रता मनुष्य के व्यवहार को उजागर करती है। विनम्र प्रवृति का व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में आसानी से उत्कृष्ट कार्य कर सकता है। विनम्रता ही मानव को इस संसार में सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति बनाती है। हम सभी को विनम्रता पूर्वक जीवन यापन करना चाहिए। सेवा भाव का असल उद्देश्य समाज के दबे कुचले लोगों की मदद करना है। ऐसे में हमारी एक छोटी सी पहल भी बड़े सामाजिक परिवर्तन का प्रतिरूप बनकर उभर सकती है। हम सभी को सदैव सेवाभाव के पथ पर अग्रसर रहना चाहिए।