लखनऊ। मित्रों, आज सेवा भाव और कर्म- योग में अपनी आत्मा को समर्पित करने वाले मृदुल व्यक्तित्व के धनी भक्ति और कृतज्ञता के प्रतीक वरिष्ठ पत्रकार श्री स्वतंत्र मिश्रा जी ने अपने जन्मदिन के मंगल बेला पर सेवा धर्म की पावन मंदाकिनी में डुबकी लगाते हुए निःसक्त तिमारदारों की भोजन सेवा कर सनातन संस्कृति के परम लक्ष्य सेवा परमो धर्मा को अपने जीवन में चरितार्थ किया।
मित्रों, आज निष्पक्ष, निडर , सटीक, भरोसेमंद और विश्वसनीय पत्रकारिता के आधार स्तंभ वरिष्ठ पत्रकार श्री स्वतंत्र मिश्रा जी ने विजय श्री फाउंडेशन ,प्रसादम सेवा के तत्वाधान में अपने जन्म दिन के मंगल वेला पर अपने पूरे परिवार के साथ लोहिया हॉस्पिटल , लखनऊ में भूख से करुणा कलित एवं क्रन्दित निःसक्त तीमारदार एवं उनके बच्चों की भोजन सेवा पूरे मनोयोग के साथ करते हुए , नर में ही नारायण स्वरुप के दर्शन किये । क्योंकि नर सेवा ही नारायण सेवा है ।
मित्रों , श्री स्वतंत्र मिश्रा जी का मानना है, कि मानव समाज में सबसे कमजोर ,दबे ,कुचले ,गरीबों और जरूरतमंद लोगों की सेवा ही असली पूजा है । वास्तव में सेवा भाव है , कर्म नहीं । इस कारण प्रत्येक परिस्थिति में योग्यता ,रूचि तथा सामर्थ्य के अनुसार सेवा हो सकती है ।सच्चे सेवक की दृष्टि में कोई भी गैर नहीं हो सकता । यदि ये गरीब नारायण है तो इनकी सेवा के बिना संसार रूपी समुद्र से तरना आसान नहीं हो सकता।
विजय श्री फाउंडेशन के संस्थापक फूडमैन विशाल सिंह ने श्री स्वतंत्र मिश्रा जी को जन्म दिन पर भोजन सेवा के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए कहा कि विनम्रता मनुष्य के व्यवहार को उजागर करती है। जीवन में भूख ही सबसे बड़ा दुख हैं, रोग हैं, तड़प हैं ,इसलिए भोजन प्रसाद सेवा के पुण्य कार्य में श्री स्वतंत्र मिश्रा जी ने प्रतिभाग करते हुए गरीब, असह्य, भूख से तडफते और करुणा कलित चेहरों पर मुस्कान लाने का जो प्रयास किया है।
इसके लिए आपके पूरे परिवार को मेरा कोटि-कोटि वंदन एवं मैं मां अन्नपूर्णा एवं माता लक्ष्मी से प्रार्थना करता हू कि आप और आपका परिवार हमेशा धन- धान्य से परिपूर्ण रहे, आप इसी तरह से मुस्कराते हुए लोगो की सेवा करे। यही पुण्यों का फिक्स डिपॉज़िट है ।