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SEBI की चुप्पी से उठे सवाल: ₹200 करोड़ के वरनियम क्लाउड घोटाले में हर्षवर्धन साबले अब भी फरार

नई दिल्ली। वरनियम क्लाउड लिमिटेड के प्रमोटर हर्षवर्धन साबले पर ₹200 करोड़ से अधिक की वित्तीय धोखाधड़ी का आरोप है, लेकिन इसके बावजूद वह अब तक गिरफ्तार नहीं हुए हैं। इस मामले ने न केवल भारतीय पूंजी बाजार को झटका दिया है, बल्कि SEBI और देश की न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

यह घोटाला साबले का पहला मामला नहीं है। इससे पहले वह Jump Networks (अब WinPro Industries) के माध्यम से निवेशकों को चूना लगाने के आरोपों में भी घिर चुके हैं। ₹200 करोड़ से अधिक की राशि का गबन कर देश से फरार होना।IPO दस्तावेज़ (RHP) में अपनी जीवित बहन को मृत घोषित करना। न्यायालयों में फर्जी बैंक रसीदें, नकली हस्ताक्षर और जाली RTGS दस्तावेज़ पेश करना।सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी रेड कॉर्नर नोटिस के बावजूद अब तक गिरफ्तारी नहीं।

निवेशकों में डर, सिस्टम पर अविश्वास
निवेशकों में भारी असंतोष और भय है। उनका मानना है कि जब इस तरह के घोटालेबाज़ स्पष्ट सबूतों के बावजूद कानून से बच सकते हैं, तो साधारण निवेशक अपनी मेहनत की कमाई को शेयर बाजार में कैसे लगाएँ?

एक खुदरा निवेशक ने कहा, हमसे कहा जाता है कि बाजार पारदर्शी और सुरक्षित है, लेकिन जब बड़े घोटालेबाज़ खुलेआम घूम रहे हैं, तो यह सुरक्षा सिर्फ कागज़ों पर है।

भारतीय अर्थव्यवस्था और विदेशी निवेश पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की नियमित धोखाधड़ी की घटनाएं विदेशी निवेशकों को भी भारत से दूर करती हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की छवि को झटका लगता है, जिससे विदेशी संस्थागत निवेश (FDI/FII) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।अगर नियामक एजेंसियाँ समय रहते कठोर कार्रवाई नहीं करतीं, तो इसका असर पूरे वित्तीय तंत्र और देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।

इस मामले ने SEBI की भूमिका पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है।निवेशकों और विशेषज्ञों का कहना है कि जब अदालतें फर्जी दस्तावेज़ों, गबन और रेड कॉर्नर नोटिस जैसी स्थितियों के बावजूद ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रही हैं, तब यह पूरी न्यायिक और निगरानी प्रणाली की प्रणालीगत विफलता को दर्शाता है।

निवेशकों की मांग में कहा कि SEBI प्रमुख तुहिन खन्ना सार्वजनिक रूप से बताएँ कि अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।पूरे मामले को CBI को सौंपा जाए, ताकि निष्पक्ष और प्रभावी जांच हो सके। कंपनी के सभी शेयरधारकों को औपचारिक रूप से सूचित किया जाए कि प्रमोटर फरार है।

यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की धोखाधड़ी नहीं, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे नियामक संस्थाओं की निष्क्रियता और कानूनी ढिलाई देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा रही है। अगर इस तरह के घोटालों पर समय रहते कठोर कार्रवाई नहीं होती, तो यह भारत के वित्तीय भविष्य के लिए एक गंभीर चेतावनी बन सकता है।

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