खुले नालों से फैलता जहर : आम जिंदगी में ज़हर घोलने का काम कर रहे हैं शहर के खुले नाले

लखनऊ। शहरों में खुले नालों की समस्या एक गंभीर मुद्दा बन गई है, जो न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है बल्कि नागरिकों के स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। नगर निगम, नगर विकास मंत्रालय और संबंधित विभागों की विफलता ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है।एकतरफ लखनऊ को स्मार्ट सिटी योजना के तहत तमाम योजनाओं की सौगात दी जा रही है , वही दूसरी तरफ गोमती नगर विराम खंड अखिलेश दास गुप्ता मार्ग स्थिति ग्वारी चौराहे के समीप से फ़ूडमैन विशाल सिंह के मकान [अरुणोदय फॉर्मेसी ] पुलिया तक खुले पड़े बदबूदार ज़हरीली गैस -युक्त नाले से जनहानि के साथ पर्यावरण को भी काफी नुकसान हो रहा है।
सरकार और संबंधित विभागों की लापरवाही
इस मुद्दे पर शासन – प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए स्थानीय निवासी लगातार आंदोलित है , लेकिन शासन – प्रशासन लगातार लापरवाह बनके इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दे रहा है। सरकार और संबंधित विभागों, जैसे नगर निगम और नगर विकास मंत्रालय, पर प्रश्न उठते हैं कि क्यों खुले नालों को ढकने के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। स्वच्छ भारत अभियान और स्मार्ट सिटी नीति के बावजूद, शहरों में खुले नाले अभी भी बने हुए हैं, जिससे लोगों का जीवन दुश्वार हो गया है। इन नालों से निकलने वाली जहरीली गैसें और बदबू न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि मानसिक तनाव का कारण भी बन रही हैं।

शासन – प्रशासन शायद भूल चूका है कि , भारतीय संविधान भी मानव को स्वच्छ पर्यावरण में गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करने का अधिकार प्रदान करता है। ‘जीवन के अधिकार’ (अनुच्छेद-21) का उपयोग भारत में विविध प्रकार से किया गया है। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ जीवित रहने का अधिकार, जीवन की गुणवत्ता, गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार और आजीविका का अधिकार शामिल है। इसके अलावा 42वें संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से संविधान में दो महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद [अनुच्छेद 48A और 51A (g)] शामिल किये गए थे, जो कि भारतीय संविधान को पर्यावरण संरक्षण का संवैधानिक दर्जा प्रदान करने वाला दुनिया का पहला संविधान बनाते हैं।

मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि खुले नालों से निकलने वाली जहरीली गैसें लोगों के जीवन में ज़हर घोलने का काम कर रही हैं। यह गैसें न केवल शारीरिक रूप से हानिकारक हैं, बल्कि मानसिक तनाव को भी बढ़ावा देती हैं। बच्चों के अध्ययन में मन नहीं लगना, सांस लेने में तकलीफ, और अस्थमा जैसी बीमारियाँ इस समस्या के प्रमुख उदाहरण हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि नालों के आसपास रहने वाले लोग जल्दी बीमार हो जाते हैं, मक्खी, मच्छर और मलेरिया जैसी बीमारियों का शिकार होते हैं। इसके अलावा, चूहों की समस्या भी गंदगी फैलाने और बीमारियाँ पैदा करने में योगदान देती है।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानी डॉ के एन दीक्षित बताते है कि दुर्गंध युक्त हवा में ऑक्सीजन की मात्रा को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है , जिससे की ऑक्सीजन की सहायता से हीमोग्लोविन के माध्यम शरीर में रक्त संचार धीरे – धीरे बहुत बुरी तरह से प्रभावित होता है । अन्त में व्यक्ति मानसिक मंदता एवं शारीरिक शिथिलता का शिकार हो जाता है।


डॉ वी के वर्मा बताते है कि रासायनिक, सूक्ष्मजीवी और सीवेज अपशिष्ट युक्त दूषित नाले का गन्दा पानी कई गंभीर बीमारियों का संकुचन है । नालों का समुचित प्रबंधन न होने पर , नाले का अपशिष्ट जल , रिसाव के माध्यम से पीने के पानी को भी दूषित करता है , जिससे कई जीवाणु जनित रोग-हैजा ,दस्त ,साल्मोनेलोसिस ,शिगेलोसिस आदि के होने की सम्भावना बानी रहती है ।

वायरल रोग : दूषित पानी वायरस के पनपने और बढ़ने के लिए एकदम सही प्रजनन स्थल है। एक बार पीने के बाद, वे निम्नलिखित रूप ले सकते हैं: हेपेटाइटिस ,एन्सेफलाइटिस,पोलियोमाइलाइटिस के कारण गले में खराश, कब्ज या दस्त और बुखार होता है।

परजीवी रोग : जैसा कि नाम से पता चलता है, परजीवी रोग दूषित पानी के माध्यम से परजीवियों द्वारा फैलते हैं। मनुष्यों को प्रभावित करने वाली कुछ सबसे आम बीमारियाँ इस प्रकार हैं: क्रिप्टोस्पोरिडिओसिस ,गियार्डियासिस ,सिस्टोसोमियासिस। इन सभी बिमारियों से सबसे ज्यादा बूढ़े , बच्चे एवं महिलाये प्रभावित होती है ।

यही नहीं , खुले नाले से निकलने वाली मीथेन , हाइड्रोजन आदि जहरीली गैसें बुजुर्गों , बच्चों एवं महिलाओं में शारीरिक विसंगतिया तो पैदा ही कर रही हैं ,इसके साथ ही साथ घरों में उपयोग किये जाने वाले ए सी आदि उकरण जल्द ख़राब हो रहे हैं। इन गैसों के कारण दमा ,ख़ासी , बुख़ार एवं दस्त आदि बीमारियां पनपती रहती हैं। बरसात के समय नाला उफान पर आ जाता है , जिस कारण से मकानों में नमी आ जाने के साथ विषैले खतरनाक सर्प ,कीड़े आदि घरों में घुस जाते है ,जिसके कारण लोगों को जान का ख़तरा लगातार बना रहता है। नाला खुला होने से अक्सर लोग दुर्घटना के बाद गिरने पर जान भी गवा देते हैं। नाला खुला होने पर स्मार्ट सिटी की छवि भी प्रभावित होती है।

शिक्षा पर प्रभाव : स्कूल टीचर्स का मानना है कि गंदगी और खुले नालों के आसपास रहने वाले बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता और वे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करते हैं। यह स्थिति बच्चों की शैक्षिक प्रगति पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। स्कूल जाते समय बच्चे खुले नाले को पार करके जाते हैं , आये दिन बच्चों के नाले में गिरने की खबर आती रहती है। इस नारकीय परिस्थिति पर भी शासन – प्रशासन ख़ामोश है , जो उसकी मंशा पर सवालिया निशान लगाती है।

पर्यावरणीय दुष्प्रभाव : पर्यावरणविदों का कहना है कि खुले नाले पर्यावरण के लिए भी हानिकारक हैं। ये नाले न केवल पानी को प्रदूषित करते हैं, बल्कि आसपास के वायुमंडल को भी जहरीला बनाते हैं। यह स्थिति पर्यावरणीय कानूनों के खिलाफ है और इससे पर्यावरण पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं।खुले नालों में बहता हुआ जल अपशिष्ट एक ऐसा अभिशाप है जो हवा, पानी आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य बल्कि जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी नष्ट कर देता है। खुले नालों से फैलने वाला प्रदूषण एक प्रकार का धीमा जहर है , जिसके कारण प्राणियों का अस्तित्व खतरे में है। सतत् विकास सिद्धांत: इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य को विकास एवं पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करना चाहिये।

WHO की रिपोर्ट : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, खुले नालों से निकलने वाली जहरीली गैसें और गंदगी के कारण सांस की बीमारियाँ, संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। WHO ने साफ तौर पर कहा है कि इन नालों को ढकना अत्यंत आवश्यक है ताकि लोगों को स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण मिल सके।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) का आदेश : राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने भी खुले नालों को ढकने के लिए आदेश जारी किया है। NGT ने यह स्पष्ट किया है कि खुले नालों से निकलने वाली गंदगी और प्रदूषण को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए। यह आदेश पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

स्वास्थ्य विभाग के आदेश : स्वास्थ्य विभाग ने भी यह कहा है कि खुले नालों के कारण होने वाली बीमारियों और संक्रमण को रोकने के लिए इन्हें ढकना अनिवार्य है। नालों के आसपास रहने वाले लोगों को संक्रमण और बीमारियों से बचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने इन नालों को ढकने के निर्देश जारी किए हैं।

स्वच्छ भारत अभियान और स्मार्ट सिटी नीति के खिलाफ : खुले नाले स्वच्छ भारत अभियान और स्मार्ट सिटी नीति के खिलाफ हैं। जहां एक ओर सभी शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर खुले नाले नागरिकों के जीवन को दुश्वार बना रहे हैं। इन नालों से निकलने वाली बदबू और जहरीली गैसें लोगों के मानसिक तनाव का कारण बन रही हैं। गोमती नगर निवासियों का कहना है कि सरकार को जल्द ही इस पर फैसला लेना चाहिए और नालों को ढकवाने का काम करना चाहिए।

नागरिकों का विरोध और चेतावनी : खुले नालों के आसपास रहने वाले लोग अपनी जिंदगी को बदतर मानते हैं और इस समस्या के समाधान के लिए कई बार धरना प्रदर्शन और आवेदन दे चुके हैं। लेकिन हर बार उन्हें केवल आश्वासन ही मिलता है। निवासियों ने चेतावनी दी है कि यदि इस पर जल्द ही कार्रवाई नहीं हुई, तो वे आने वाले चुनाव का बहिष्कार करेंगे और धरना प्रदर्शन करेंगे।

निष्कर्ष : खुले नाले शहरों की गंभीर समस्या हैं जो न केवल पर्यावरण और स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि नागरिकों के मानसिक तनाव का भी कारण बन रहे हैं। सरकार और संबंधित विभागों को इस समस्या का शीघ्र समाधान निकालना चाहिए और खुले नालों को ढकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। तभी स्वच्छ भारत अभियान और स्मार्ट सिटी नीति के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकेगा।

यही नहीं ,हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के द्वारा सर्वसम्मति से एक स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण को सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में मान्यता देने के की बात की गयी । स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार 1972 के स्टॉकहोम घोषणा में निहित है, जिसे लोकप्रिय रूप से मानव पर्यावरण का मैग्ना कार्टा कहा जाता है। ‘केयरिंग फॉर द अर्थ 1991’ और 1992 के ‘अर्थ समिट’ ने भी घोषित किया कि मनुष्य प्रकृति के साथ एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन का हकदार है। स्वस्थ पर्यावरण का मानव अधिकार नागरिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के पर्यावरणीय आयामों को एक साथ लाता है तथा प्राकृतिक पर्यावरण के मूल तत्त्वों की रक्षा करता है, जो कि गरिमापूर्ण जीवन को सक्षम बनाते हैं। ऐसे में शहरों में खुले नालों की समस्या का निस्तारण अतिशीघ्र करना अति आवश्यक है।

यह लेख खुले नालों से संबंधित विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है और सरकार एवं संबंधित विभागों को इसके समाधान के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

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