लखनऊ। बृहस्पतिवार को विजय श्री फाउंडेशन, प्रसादम सेवा के तत्वाधान में अनूप पाण्डेय, अजय पाण्डेय, ज्योति पाण्डेय एवं ज्योतिरदित्य पाण्डेय ने अपने पूरे परिवार के साथ अपनी माता स्वर्गीय सत्यवती पांडेय की स्मृति में प्रसादम सेवा के लोहिया हॉस्पिटल प्रांगण में कैंसर एवं असाध्य रोगो से पीड़ित मरीजों के निःशक्त तीमारदारों की भरपेट स्वादिष्ट भोजन द्वारा सेवा करके अपने परिजनों को याद किया गया एवं उनके द्वारा स्थापित सामाजिक एवं पारिवारिक आदर्शों को अंगीकार करते हुए उन पर आजीवन चलने का शपथ लिया गया।
माता स्वर्गीय सत्यवती पांडेय की स्मृति के अवसर पर अनूप पाण्डेय का मानना है कि सेवा से बड़ा कोई परोपकार इस विश्व में नहीं है, जिसे मानव सहजता से अपने जीवन में अंगीकार कर सकता है। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर हमारे अंतिम सेवा काल तक सेवा ही एक मात्र ऐसा आभूषण है, जो हमारे जीवन को सार्थक सिद्ध करने में अहम भूमिका निभाता है। बिना सेवा भाव विकसित किए मनुष्य जीवन को सफल नहीं बना सकता। हम सभी को चाहिए कि सेवा के इस महत्व को समझें व दूसरों को भी इस ओर जागरूक करने की पहल करें।
मित्रों , हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें भगवान ने नि:शक्त तीमारदारों की सेवा के लिए सक्षम बनाया। हमें विश्वास है कि नर सेवा नारायण सेवा के लिए हमने जिन लोगों को भोजन प्रसाद वितरण किया है, इसी में से कोई न कोई परमात्मा होगा जो हम सबका कल्याण करेंगे। क्योकि – अन्नं ब्रह्मा रसो विष्णुर्भोक्ता देवो महेश्वरः अर्थात् अन्न ब्रह्म है, रस विष्णु है और खाने वाले महेश्वर हैं।
इस मौके पर फूडमैन विशाल सिंह ने विजय श्री फाउंडेशन, प्रसादम सेवा की तरफ़ से स्वर्गीय सत्यवती पांडेय को श्रद्धा सुमन अर्पित की। आगे उन्होंने कहा कि जीवन में भूख ही सबसे बड़ा दुख हैं, रोग हैं, तड़प हैं इसलिए प्रसाद सेवा के पुण्य कार्य में श्री अनूप पाण्डेय जी ने पूरे परिवार के साथ प्रतिभाग करते हुए गरीब , असह्य , भूख से तडपतें और करुणा कलित चेहरों पर मुस्कान लाने का जो प्रयास किया है इसके लिए आपके पूरे परिवार को मेरा कोटि-कोटि वंदन एवं मैं मां अन्नपूर्णा एवं माता लक्ष्मी से प्रार्थना करता हूं कि आपका पूरा परिवार हमेशा धन-धान्य से परिपूर्ण रहे, आप सब इसी तरह से मुस्करातें हुए लोगो की सेवा करें, यही पुण्यों का फिक्स डिपॉज़िट है।
” आत्मवत् सर्वभूतेषु ” की भावना से दूसरे का सुख दुःख अपना सुख दुःख हो जाता है, पर की भेद दृष्टि ही नही रहती ,इस अवस्था में हमारी समस्त चेष्टाएँ सेवा रूप हो जाती है और किसी की भी सेवा स्वयं सेवा होती है , यह मनुष्य को आत्मतुष्टि प्रदान करती है ।
फ़ूडमैन विशाल सिंह