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गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती पर जानें उनके जीवन से जुड़ी खास बातें

17 जनवरी को सिख समुदाय के 10वें और आखिरी गुरु, गुरु गोबिंद सिंह की आज जयंती है। इस मौके पर देश भर के गुरुद्वारों में सुंदर रोशनी और आतिशबाजी की जाती है।

Story Highlights
  • गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 1666 में पटना में हुआ था
  • गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना किया था
  • इस दिन को प्रकाश पर्व भी कहा जाता है

17 जनवरी को सिख समुदाय के 10वें और आखिरी गुरु, गुरु गोबिंद सिंह की आज जयंती है। इस मौके पर देश भर के गुरुद्वारों में सुंदर रोशनी और आतिशबाजी की जाती है। खासकर पटना साहिब में इस दिन रौनक देखते बनती है। इस दिन गुरुद्वारों में भव्य आयोजन कराए जाते हैं. अरदास लगती है और विशास लंगर लगाए जाते हैं। चलिए जानते हैं कौन थे गुरु गोबिंद सिंह ?

गुरु गोबिंद सिंह, सिख धर्म के दसवें गुरु थे और उनका कार्यक्षेत्र 1675 ईसा पूर्व से 1708 ईसा पूर्व तक था। उन्हें सिखों के दसवें गुरु के रूप में स्वीकृति मिली थी जब उनके पिता, गुरु तेग बहादुर, धर्म के लिए अपने जीवन की बलिदान देने के बाद शहीद हो गए थे।

गुरु गोबिंद सिंह ने सिख समुदाय को एक शक्तिशाली समृद्धि की दिशा में प्रेरित किया और उन्होंने खालसा सेना की स्थापना की, जो सिखों को स्वतंत्रता और धर्मरक्षा के लिए जिम्मेदार बनाने का मकसद रखती थी।

कब हुआ था गुरु गोबिंद सिंह का जन्म?

गुरु गोबिंद सिंह, भारतीय सिख धर्म के दसवें गुरु थे और उनका जन्म 22 दिसम्बर 1666 को हुआ था। हर साल पौष माह के शुक्ल पक्ष के सप्तमी तिथि को गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाई जाती है. इस दिन को प्रकाश पर्व के तौर पर भी जाना जाता है। उनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था, जो नौवें गुरु थे। गुरु गोबिंद सिंह ने सिख समुदाय को मजबूत बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यों किए और उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। उनके योगदान ने सिखों को संघर्ष करने और अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया। गुरु गोबिंद सिंह को सिखों के पांचवे गुरु के रूप में माना जाता है।

गुरु गोविंद सिंह जी ने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया | उनकी मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए | उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी | उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है | गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दी थी | गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु 42 वर्ष की उम्र में 7 अक्टूबर 1708 को नांदेड़, महाराष्ट्र में हुई |

गुरु गोविंद सिंह का योगदान

  • गुरु गोबिंद साहब जी ने ही सिखों के नाम के आगे सिंह लगाने की परंपरा शुरु की थी, जो आज भी सिख धर्म के लोगों द्धारा चलाई जा रही है।
  • गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई बड़े सिख गुरुओं के महान उपदेशों को सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित कर इसे पूरा किया था।
  • वाहेगुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही गुरुओं के उत्तराधिकारियों की परंपरा को खत्म किया, सिख धर्म के लोगों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब को सबसे पवित्र एवं गुरु का प्रतीक बनाया।
  • सिख धर्म के 10वें गुरु गोबिंद जी ने साल 1669 में मुगल बादशाहों के खिलाफ विरोध करने के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी।
  • सिख साहित्य में गुरु गोबिन्द जी के महान विचारों द्धारा की गई “चंडी दीवार” नामक साहित्य की रचना खास महत्व रखती है।
  • सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द साहब ने ही युद्द में हमेशा तैयार रहने के लिए ‘5 ककार’ या ‘5 कक्के’ को सिखों के लिए जरूरी बताया, इसमें केश (बाल), कच्छा, कड़ा, कंघा, कृपाण (छोटी तलवार) आदि शामिल हैं।
  • गुरु गोबिंद सिंह द्धारा लड़े हुए कुछ प्रमुख युद्ध – Guru Gobind Singh Battles
  • सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी ने अ्पने सिख अनुयायियों के साथ मुगलों के खिलाफ कई बड़ी लड़ाईयां लड़ीं।
  • इतिहासकारों की माने तो गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन में 14 युद्ध किए, इस दौरान उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ कुछ बहादुर सिख सैनिकों को भी खोना पड़ा।
  • लेकिन गुरु गोविंद जी ने बिना रुके बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी। 

गुरु गोविंद सिंह से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

  1. गुरु गोबिन्द सिंह को पहले गोबिन्द राय से जाना जाता था। जिनका जन्म सिक्ख गुरु तेग बहादुर सिंह के घर पटना में हुआ, उनकी माता का नाम गुजरी था।
  2. 16 जनवरी को गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म दिन मनाया जाता है। गुरूजी का जन्म गोबिन्द राय के नाम से 22 दिसम्बर 1666 में हुआ था। लूनर कैलेंडर के अनुसार 16 जनवरी ही गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म दिन है।
  3. बचपन में ही गुरु गोबिन्द सिंह के अनेक भाषाए सीखी जिसमें संस्कृत, उर्दू, हिंदी, ब्रज, गुरुमुखी और फारसी शामिल है। उन्होंने योद्धा बनने के लिए मार्शल आर्ट भी सिखा।
  4. गुरु गोबिन्द सिंह आनंदपुर के शहर में जो की वर्तमान में रूपनगर जिल्हा पंजाब में है। 
  5. उन्होंने इस जगह को भीम चंड से हाथापाई होने के कारण छोडा और नहान चले गए जो की हिमाचल प्रदेश का पहाड़ी इलाका है।
  6. नहान से गुरु गोबिन्द सिंह पओंता चले गए जो यमुना तट के दक्षिण सिर्मुर हिमाचल प्रदेश के पास बसा है। 
  7. वहा उन्होंने पओंता साहिब गुरुद्वारा स्थापित किया और वे वहाँ सिक्ख मूलो पर उपदेश दिया करते थे फिर पओंता साहिब सिक्खों का एक मुख्य धर्मस्थल बन गया। वहाँ गुरु गोबिन्द सिंह पाठ लिखा करते थे। वे तिन वर्ष वहाँ रहे और उन तीनो सालो में वहा बहुत भक्त आने लगे।
  8. सितम्बर 1688 में जब गुरु गोबिन्द सिंह 19 वर्ष के थे तब उन्होंने भीम चंड, गर्वल राजा, फ़तेह खान और अन्य सिवालिक पहाड़ के राजाओ से युद्ध किया था। 
  9. युद्ध पुरे दिन चला और इस युद्ध में हजारो जाने गई। जिसमे गुरु गोबिन्द सिंह विजयी हुए। इस युद्ध का वर्णन “विचित्र नाटक” में किया गया है जोकि दशम ग्रंथ का एक भाग है।
  10. नवम्बर 1688 में गुरु गोबिन्द सिंह आनंदपुर में लौट आए जोकि चक नानकी के नाम से प्रसिद्ध है वे बिलासपुर की रानी के बुलावे पर यहाँ आए थे।
  11. 1699 में जब सभी जमा हुए तब गुरु गोबिंद सिंह ने एक खालसा वाणी स्थापित की “वाहेगुरुजी का खालसा, वाहेगुरुजी की फ़तेह” ऊन्होने अपनी सेना को सिंह (मतलब शेर) का नाम दिया। साथ ही उन्होंने खालसा के मूल सिध्दांतो की भी स्थापना की।
  12. ‘दी फाइव के’ ये पांच मूल सिध्दांत थे जिनका खालसा पालन किया करते थे। इसमें ब़ाल भी शामिल है जिसका मतलब था बालो को न काटना। कंघा या लकड़ी का कंघा जो स्वछता का प्रतिक है, कडा या लोहे का कड़ा (कंगन जैसा), खालसा के स्वयं के बचाव का, कच्छा अथवा घुटने तक की लंबाई वाला पजामा; यह प्रतिक था। और किरपन जो सिखाता था की हर गरीब की रक्षा चाहे वो किसी भी धर्म या जाती का हो।
  13. गुरु गोबिन्द सिंह को गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से शोभित किया गया है क्योकि उन्होंने उनके ग्रंथ को पूरा किया था। गुरु गोबिन्द सिंह ने अपने प्राण 7 अक्टूबर 1708 को छोड़े।

गुरु गोबिंद सिंह ने अपने जीवन में सिख समुदाय को साहस, समर्थन, और एकता की शिक्षा दी, जो आज भी सिख समुदाय के लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनके योगदान को सिखों और भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है।

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