पूजनीय माता जी का तर्पण कर न्यायमूर्ति अरविन्द कुमार मिश्रा ने दी भावपूर्ण श्रद्धांजलि

लखनऊ । हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरान्त लोग विस्मृत न कर दें इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है।

श्राद्ध हिन्दू धर्म में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं। जिनके गुण हमें विरासत में मिले हैं उनका हम पर न चुकाये जा सकने वाला ऋण है।

इसी विचार भाव को लेकर न्यायमूर्ति अरविन्द कुमार मिश्रा ने अपने पूरे परिवार के साथ अपनी पूजनीय माता जी के श्राद्ध के उपलक्ष्य में विजय श्री फाउंडेशन,प्रसादम सेवा के तत्वाधान में गुरुवार को सेवा दिवस के रूप में मानते हुए लोहिया हॉस्पिटल (लखनऊ) में कैंसर एवं असाध्य रोगियों के निःसक्त तिमारदारो की भोजन की सेवा कर दरिद्र नारायण की सेवा के माध्यम से नर सेवा ही नारायण सेवा मिशन को चरितार्थ किया। शास्त्रों के अनुसार पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में जो तर्पण किया जाता है, उसके पीछे धार्मिक मान्यता है कि इससे पितरों को स्वर्ग प्राप्त होता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। मंदिरों और नदियों के किनारे पितरों को तर्पण देने की सदियों से चली आ रही धार्मिक परम्परा आज भी अनवरत जारी है।

साथियों ,सेवा वह है जो किसी दूसरे को सुख देने के लिये निष्प्रह और निष्काम भाव से की जाती है । मन से सबका हित चाहना ही सेवा है । ऐसा तभी सम्भव है जब हम सबमे स्वयं को देखे । आत्मवत् सर्वभूतेषु ” की भावना से दूसरे का सुख दुःख अपना सुख दुःख हो जाता है । पर की भेद दृष्टि ही नही रहती ,इस अवस्था में हमारी समस्त चेष्टाएँ सेवा रूप हो जाती है और किसी की भी सेवा स्वयं सेवा होती है । यह मनुष्य को आत्मतुष्टि प्रदान करती है ।इसमें कृतिमता, दिखावा, आडम्बर या अहंकार आदि के लिये कोई स्थान नही होता है । इस प्रकार की सेवा पूर्णतः निष्काम होती है ।

इस दौरान फूडमैन विशाल सिंह ने पूरे प्रसादम परिवार की तरफ़ से पूजनीय माता जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्मिहोंने ने कहा कि जीवन में भूख ही सबसे बड़ा दुख हैं, रोग हैं, तड़प हैं ,इसलिए प्रसाद सेवा के पुण्य कार्य में न्यायमूर्ति श्री अरविन्द कुमार मिश्रा जी ने प्रतिभाग करते हुए गरीब , असह्य , भूख से तडफते और करुणा कलित चेहरों पर मुस्कान लाने का जो प्रयास किया है , इसके लिए आपके पूरे परिवार को मेरा कोटि-कोटि वंदन एवं मैं मां अन्नपूर्णा एवं माता लक्ष्मी से प्रार्थना करता हू कि आप और आपका परिवार हमेशा धन- धान्य से परिपूर्ण रहे , आप इसी तरह से मुस्कराते हुए लोगो की सेवा करे । यही पुण्यों का फिक्स डिपॉज़िट है ।

निष्काम सेवा का अधिष्ठान यह भावना है कि संसार जगतनियंता की लीलास्थली है जिसमे वह परमप्रभु स्वयं विविधि रूपों में अपने खेल रचता है और स्वयं ही खेलता है ।उस महा प्रभु से साक्षात्कार करने का एक साधन तन, मन, धन, पद, प्रतिष्ठा,मोह, ममता और अहंकार का पूर्ण समर्पण है । तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा की भावना से समस्त सांसारिक व्यवहार परमात्मा के है ,परमात्मा के लिये है ,हम निमित्त मात्र हैं , कठपुतली की भाँति उनके खेल के साधन है ।
[फ़ूडमैन विशाल सिंह]

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