लखनऊ। मानवता के प्रतिमूर्ति, हरेंद्र श्रीवास्तव ने अपने पूरे परिवार के साथ हर्षित श्रीवास्तव जी के जन्मदिन की मंगल वेला पर विजय श्री फाउंडेशन प्रसादम सेवा के तत्वाधान में मेडिकल कॉलेज, लखनऊ में कैंसर एवम असाध्य रोगियों के निःसक्त तिमारदारो की भोजन सेवा करते हुए दरिद्र नारायण की सेवा के माध्यम से नर सेवा ही नारायण सेवा है, के ध्येय वाक्य को चरितार्थ किया।
साथियों, हरेंद्र श्रीवास्तव जी का मानना है कि सेवा वह है जो किसी दूसरे को सुख देने के लिये निष्प्रह और निष्काम भाव से की जाती है । मन से सबका हित चाहना ही सेवा है । ऐसा तभी सम्भव है जब हम सबमे स्वयं को देखे । ” आत्मवत् सर्वभूतेषु ” की भावना से दूसरे का सुख दुःख अपना सुख दुःख हो जाता है । पर की भेद दृष्टि ही नही रहती ,इस अवस्था में हमारी समस्त चेष्टाएँ सेवा रूप हो जाती है और किसी की भी सेवा स्वयं सेवा होती है । यह मनुष्य को आत्मतुष्टि प्रदान करती है ।इसमें कृतिमता, दिखावा, आडम्बर या अहंकार आदि के लिये कोई स्थान नही होता है । इस प्रकार की सेवा पूर्णतः निष्काम होती है ।
मैं फूडमैन विशाल सिंह , हर्षित श्रीवास्तव जी को पूरे प्रसादम परिवार की तरफ़ से जन्म दिन की हार्दिक बधाई देता हूँ। मित्रों ,जीवन में भूख ही सबसे बड़ा दुख हैं, रोग हैं, तड़प हैं ,इसलिए प्रसाद सेवा के पुण्य कार्य में श्री हरेंद्र श्रीवास्तव जी ने अपने पूरे परिवार के साथ प्रतिभाग करते हुए गरीब , असह्य , भूख से तडफते और करुणा कलित चेहरों पर मुस्कान लाने का जो प्रयास किया है , इसके लिए आपके पूरे परिवार को मेरा कोटि-कोटि वंदन एवं मैं मां अन्नपूर्णा एवं माता लक्ष्मी से प्रार्थना करता हू कि आप और आपका परिवार हमेशा धन- धान्य से परिपूर्ण रहे , आप इसी तरह से मुस्कराते हुए लोगो की सेवा करे । यही पुण्यों का फिक्स डिपॉज़िट है।
दीप इव भास, सूर्य इव विराजस्व, वटवक्षृ इव दृढनिश्चयः तिष्ठत।
भवतः जन्मदिने आशीर्वादः भवतु॥
[फ़ूडमैन विशाल सिंह]