आज संसद में भारतीय जनता पार्टी के सांसद हरनाथ सिंह यादव ने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम को खत्म करने की मांग उठाई। उन्होंने तर्क दिया कि यह कानून भगवान राम और भगवान कृष्ण के बीच भेदभाव करता है, क्योंकि राम जन्मभूमि को इस कानून से छूट दी गई है, जबकि कृष्ण जन्मभूमि को नहीं।
बीजेपी सांसद ने कहा है कि इस कानून को बनाकर संविधान में समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है। “यह कानून भगवान राम और भगवान कृष्ण के बीच भेद पैदा करता है। राम जन्मभूमि को इस कानून से छूट दी गई है, जबकि कृष्ण जन्मभूमि को नहीं। यह कानून अनुचित और भेदभावपूर्ण है।”
उन्होंने आगे कहा, “यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करता है। यह लोगों को अपनी पसंद के अनुसार पूजा करने का अधिकार नहीं देता है।” यादव की मांग का समर्थन करते हुए, भाजपा के अन्य सांसदों ने भी इस कानून को खत्म करने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह कानून भारत की धार्मिक एकता के लिए खतरा है।
हालांकि, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस मांग का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह कानून धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
यह बहस अभी जारी है और यह देखना बाकी है कि सरकार इस मांग पर क्या कदम उठाती है।
क्या कहता है वर्शिप एक्ट, 1991?
1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है। यह कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी। यह कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था।
आपको बता दें कि यह कानून तब बनाया गया जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम सीमा पर भी पहुंचा था। इस आंदोलन का प्रभाव देश के अन्य मंदिरों और मस्जिदों पर भी पड़ा। उस वक्त अयोध्या के अलावा भी कई विवाद सामने आने लगे। बस फिर क्या था इस पर विराम लगाने के लिए ही उस वक्त की नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी।