नई दिल्ली । चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (पीएलएएएफ) हाल के हफ्तों में तिब्बती पठार पर आक्रामक रूप से सक्रिय हुई है। चीनी वायुसेना ने र गोलमुड में पैरा-ड्रॉपिंग अभ्यास किया है। पीएलए सैनिकों ने चीनी नव वर्ष के समय तिब्बती पठार के उत्तरी भाग में किंघई के गोलमुड से Y-20 परिवहन विमान में उड़ान भरी और पूर्व में 60 किमी की दूरी पर उतरे। तिब्बती पठार भारतीय सीमा से जुड़ी हुई है। इस अभ्यास से चीनी सेना की ये मंशा भी साफ हुई है कि वह पूरे साल तिब्बत में सक्रिय रहने की इच्छा रखती है।
सिर्फ इतना ही नहीं गर्मियां आते ही चीनी सेना ने पंगटा और बामदा हवाई क्षेत्रों में नए राडार स्थापित करना भी शुरू कर दिया है। ये दोनों जगहें वास्तविक नियंत्रण रेखा से 200 किमी से भी कम दूरी पर हैं। चीन यहां से भारत की हवाई गतिविधियों पर निगरानी रखना चाहता है। चीनी सेना की गतिविधियां भारत के लिए चिंता का विषय हैं और भारत भी इससे निपटने की रणनीति पर काम कर रहा है।
फरवरी 2024 में केंद्र सरकार ने चीनी वायु सेना की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर उच्च शक्ति वाले रडार स्थापित करने के लिए 6,000 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी थी। रडार का निर्माण लार्सन एंड टुब्रो द्वारा किया जाएगा। भारत में निर्मित राडार को एलएसी और पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर तैनात करने की योजना है। नए रडार लद्दाख सेक्टर में चीनी वायु सेना की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए हैं।
पूर्वी मोर्चे पर चीनी सेना की संदिग्ध गतिविधियों को देखते हुए बेहतर रडार कवरेज महत्वपूर्ण हो गया है। चीनी वायु सेना ने लड़ाकू विमान भेजकर लद्दाख के डेमचोक सेक्टर में पहले ही अपनी मंशा के संकेत दिए हैं। हालांकि तब भारतीय वायु सेना ने अपने लड़ाकू विमानों को पास के हवाई अड्डों से डेमचोक सेक्टर में भेजकर जोरदार जवाब दिया था।
भारतीय वायु सेना ने दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के बिजबिहड़ा इलाके में जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग की साढ़े तीन किलोमीटर लंबी आपातकालीन हवाई पट्टी का रनवे के रूप में उपयोग करने की तैयारी भी की है। भारतीय वायु सेना अपने लड़ाकू विमानों का बेड़ा भी बढ़ा रही है।
भारत में निर्मित 97 एलसीए मार्क 1ए लड़ाकू जेट खरीदने की मंजूरी मिल गई है। इसके अलावा 156 प्रचंड लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर भी खरीदे जाएंगे जो सेना और वायु सेना को दिए जाएंगे। कोचिन शिपयार्ड 40 हजार करोड़ की लागत से भारत के लिए तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर भी बनाएगा जो 2035 तक शामिल हो सकता है।