परोपकार: हर धर्म की नींव …लेखक फूडमैन विशाल सिंह

परोपकार का अर्थ है दूसरों की भलाई के लिए बिना किसी स्वार्थ के कार्य करना। यह केवल एक कर्म नहीं, बल्कि मानवीयता का सबसे बड़ा मूल्य है। हर धर्म में परोपकार को केंद्र में रखा गया है, क्योंकि यह जीवन को पवित्र और समाज को सशक्त बनाता है। आज के युग में, जब भौतिकता और स्वार्थ का बोलबाला है, परोपकार के आदर्श को अपनाना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।

धार्मिक परिप्रेक्ष्य में परोपकार

हर धर्म के मूल में परोपकार एक अनिवार्य तत्व है। यह कर्म, भावना और जिम्मेदारी के रूप में प्रस्तुत होता है:

  • हिंदू धर्म:
    हिंदू धर्म में “सेवा परमो धर्मः” कहा गया है, जिसका अर्थ है सेवा या परोपकार ही सर्वोच्च धर्म है। भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने निष्काम कर्म को महत्त्व दिया है, यानी बिना किसी अपेक्षा के दूसरों के लिए कार्य करना।
  • इस्लाम:
    इस्लाम में ज़कात (दान) का महत्व है, जो यह सुनिश्चित करता है कि समाज में कमजोर वर्गों का भी ध्यान रखा जाए। पैगंबर मोहम्मद का कहना था, “दुनिया में सबसे अच्छा इंसान वह है जो दूसरों के लिए फायदेमंद हो।”
  • ईसाई धर्म:
    बाइबिल में परोपकार को प्रेम का सर्वोच्च रूप माना गया है। यीशु मसीह ने कहा, “अपने पड़ोसी से उसी तरह प्यार करो, जैसे तुम स्वयं से करते हो।”
  • सिख धर्म:
    “सेवा” सिख धर्म का आधार है। लंगर और जरूरतमंदों की सेवा सिख धर्म के अनुयायियों का प्रमुख कार्य है।
  • बौद्ध धर्म:
    बौद्ध धर्म में करुणा (compassion) और दान (charity) को आध्यात्मिक जीवन की प्राथमिकता माना गया है। “सबका भला हो, सब सुखी रहें,” बौद्ध धर्म का प्रमुख संदेश है।

परोपकार का वास्तविक स्वरूप

परोपकार का अर्थ केवल धन या वस्त्र का दान करना नहीं है। यह एक व्यापक भावना है, जिसमें दूसरों के लिए समय, सहानुभूति और समर्थन भी शामिल है। कुछ उदाहरण:

शिक्षा का परोपकार: किसी गरीब बच्चे की पढ़ाई का खर्च उठाना या उन्हें शिक्षित करना।

स्वास्थ्य का परोपकार: बीमारों की सेवा करना या उन्हें मुफ्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना।

प्रकृति का परोपकार: पर्यावरण को संरक्षित करना, पेड़ लगाना और जीव-जंतुओं की रक्षा करना।

समाज पर परोपकार का प्रभाव

परोपकार का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि यह समाज में समानता और सद्भावना का निर्माण करता है।

  • गरीबी का उन्मूलन: गरीबों की मदद करने से उनके जीवन स्तर में सुधार होता है।
  • शिक्षा और सशक्तिकरण: शिक्षा के माध्यम से समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त किया जा सकता है।
  • सामाजिक एकता: परोपकार समाज में भरोसा और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है।

आधुनिक युग में परोपकार

आज के समय में, परोपकार के कार्य विविध रूप ले चुके हैं। व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों के माध्यम से जरूरतमंदों की मदद के लिए कई लोग अपने जीवन को सेवा के लिए समर्पित कर रहे हैं। फूडमैन विशाल सिंह जैसे समाजसेवियों ने परोपकार को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया है। उन्होंने भूखे को भोजन कराने और बीमारों की मदद करने के कार्यों को प्राथमिकता दी है।

परोपकार: एक जीवनशैली

परोपकार केवल एक कार्य नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है। यह हमें खुद के स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों की भलाई के लिए काम करने की प्रेरणा देता है। जब हम दूसरों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं, तो हम अपने जीवन में भी सकारात्मकता और संतोष का अनुभव करते हैं।

निष्कर्ष : हर धर्म परोपकार को जीवन का आधार मानता है। यह हमें न केवल एक अच्छा इंसान बनाता है, बल्कि एक बेहतर समाज और दुनिया के निर्माण में भी योगदान देता है। भले ही धर्म अलग-अलग हों, उनका उद्देश्य एक ही है—एक-दूसरे की भलाई करना और मानवता को आगे बढ़ाना।

“दूसरों के जीवन में खुशियां भरना, वास्तव में खुद के जीवन को सार्थक बनाना है।”

फूडमैन विशाल सिंह की कलम से

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