हमारे प्राचीन भारतीय दर्शन में जीवन के अद्भुत दृष्टिकोण को प्रदर्शित करने वाली एक महत्वपूर्ण अवधारणा है – वसुधैव कुटुंबकम। यह संस्कृत का एक प्रसिद्ध सूत्र है, जिसका अर्थ है “संपूर्ण पृथ्वी ही एक परिवार है”। यह विचार न केवल भारतीय संस्कृति की गहरी मानवीय दृष्टि को दर्शाता है, बल्कि यह हमारे विचारों और कार्यों के प्रति एक सार्वभौमिक और साकारात्मक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करता है।
वसुधैव कुटुंबकम का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ
“वसुधैव कुटुंबकम” शब्द का उल्लेख वेदों, उपनिषदों और महाकाव्यों में मिलता है, जो हमें यह सिखाते हैं कि पूरी पृथ्वी और इसके सभी निवासी एक ही परिवार के सदस्य हैं। इसका अर्थ है कि हमें न केवल अपने परिवार के सदस्यों के प्रति, बल्कि संपूर्ण मानवता और प्रकृति के प्रति भी प्रेम, करुणा और सम्मान की भावना रखनी चाहिए।
यह विचार भारतीय संस्कृति की परंपराओं में गहरे रूप से बसा हुआ है, जो हमें यह सिखाता है कि हम किसी भी देश, धर्म, रंग या वर्ग के आधार पर विभाजित नहीं हैं। सभी मनुष्य एक ही अदृश्य धागे से जुड़े हुए हैं, जो हमें एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी का अहसास कराता है। इस दृष्टिकोण के माध्यम से भारतीय संस्कृति ने सार्वभौमिक भाईचारे और सहअस्तित्व को बढ़ावा दिया है।
वसुधैव कुटुंबकम का वैश्विक दृष्टिकोण
आज के समय में, जब दुनिया एक वैश्विक गाँव बन चुकी है और विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक संबंध बढ़े हैं, “वसुधैव कुटुंबकम” का सिद्धांत पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हम सभी का एक ही साझा ग्रह है और हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम पृथ्वी और इसके संसाधनों का सामूहिक रूप से संरक्षण करें।
इस सिद्धांत का पालन करने से न केवल मानवता के बीच प्रेम और सद्भाव बढ़ेगा, बल्कि यह प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, जलवायु परिवर्तन, और वैश्विक समस्याओं जैसे मुद्दों पर भी एकजुटता की भावना को बढ़ावा देगा। जब हम संपूर्ण मानवता को अपना परिवार मानते हैं, तो हम सभी की भलाई के लिए काम करने का एक नया दृष्टिकोण प्राप्त करते हैं।
वसुधैव कुटुंबकम और शांति का संदेश
वसुधैव कुटुंबकम का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह हमें शांति और सहअस्तित्व का संदेश देता है। जब हम यह मानते हैं कि संपूर्ण पृथ्वी एक परिवार है, तो हम किसी भी प्रकार की हिंसा, युद्ध और संघर्ष का समर्थन नहीं कर सकते। इसके बजाय, हमें अपने रिश्तों को सम्मान, समझ और प्यार के आधार पर बनाना चाहिए।
दूसरे देशों और संस्कृतियों के प्रति सच्चे सम्मान और सहनशीलता की भावना से हम एक शांतिपूर्ण और समृद्ध वैश्विक समाज का निर्माण कर सकते हैं। यही कारण है कि वसुधैव कुटुंबकम को आज भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो हमें दूसरों के दृष्टिकोण को समझने और उनके अधिकारों का सम्मान करने की प्रेरणा देता है।
आधुनिक युग में वसुधैव कुटुंबकम का पालन
आज के समय में जब दुनिया भर में संघर्ष, असहमति और भेदभाव की घटनाएँ घटित हो रही हैं, “वसुधैव कुटुंबकम” का सिद्धांत हमें एकजुट होने और एक दूसरे का सहयोग करने का मार्ग दिखाता है। इस सिद्धांत का पालन करने के लिए हमें केवल धर्म, जाति, रंग और लिंग के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना होगा, बल्कि हमें एक दूसरे के दुःख-सुख में समान रूप से भागीदार बनना होगा।
हमारे दैनिक जीवन में छोटे-छोटे प्रयासों से हम इस सिद्धांत को लागू कर सकते हैं। जैसे कि किसी जरूरतमंद की मदद करना, पर्यावरण की रक्षा करना, और वैश्विक समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए सहयोग करना। यह सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि जब हम अपनी दुनिया को एक परिवार की तरह देखेंगे, तो हम अपनी पूरी मानवता को सुधारने की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।
फ़ूडमैन विशाल सिंह की कलम से