कलियुग जीवन में सेवा सत्संग है मुक्ति का मार्ग

'सेवा' और 'सत्संग' दो महत्वपूर्ण शब्द हैं, जिनका अर्थ इस युग में जीवन के उद्देश्य को समझाने में सहायक है।

सत्संग किसी समय, घड़ी, दिन का मोहताज नहीं है। सत्संग लाभ तभी देता है जब केवल सुनने या देखने मात्र तक ही सीमित न रहे बल्कि जब सत्संग किया जाए। उन्होंने कहा कि चौरासी लाख योनियों में धक्के खाकर एक बार मनुष्य का जन्म मिलता है। मनुष्य एक ऐसी रचना है जिसे परमात्मा के बाद का दर्जा दिया गया है। मनुष्य में बुद्धि और विवेक के अभूषण होते हैं। फिर भी अपने इस अनमोल जीवन को मिट्टी में मिला रहा है।

कलियुग के आधार को ही मुक्ति का आधार माना गया है परंतु मनुष्य इस नाम रूपी दौलत को भी कोड़ी के भाव गवां रहा है। बुरे का परिणाम कभी अच्छा नहीं होता और सदकर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता। एक हृदय में प्रभु का नाम और काम दोनों नहीं रह सकते। इसलिए मन को कामना से रिक्त कर इसमें प्रभु का नाम भरें। गुरु का दर्जा परमात्मा से भी ऊंचा इसलिए बताया क्योंकि गुरु ही है जो परमात्मा को पाने की राह सुझाता है। गुरु का वचन किसी स्वार्थ में नहीं लिपटा होता। वो तो परमार्थ से लिपटा है इसलिए गुरु वचन कभी नहीं पलटता। उन्होंने फरमाया प्रेम में बड़ी ताकत है। प्रेम सेवा से उपजता है।

क्या है सेवा सत्संग ?

‘सेवा’ और ‘सत्संग’ दो महत्वपूर्ण शब्द हैं, जिनका अर्थ इस युग में जीवन के उद्देश्य को समझाने में सहायक है। सेवा का अर्थ है बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद करना, उन्हें दुखों से उबारना और उनके जीवन में सुख-शांति लाना। सत्संग का अर्थ है “सत” (सच्चाई) और “संग” (साथ)। यह शब्द आध्यात्मिक संगति और साधू-संतों की संगति में रहने का संकेत देता है, जहां हम सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं।

सेवा सत्संग का महत्व आध्यात्मिक उन्नति

कलियुग में लोग भौतिक सुखों में इतने लीन हो गए हैं कि उन्होंने आत्मा और परमात्मा की तलाश करना छोड़ दिया है। सेवा सत्संग के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में सच्चे उद्देश्य को पहचान सकता है। संतों और गुरुजनों के साथ समय बिताने से जीवन में शांति, संतोष और प्रेम की भावना उत्पन्न होती है। यह आत्मा की उन्नति का मार्ग है।

सेवा सत्संग से समाज में बदलाव

कलियुग में समाज में असहमति और हिंसा की घटनाएँ बढ़ चुकी हैं। सेवा सत्संग समाज को एकजुट करने और प्रेम और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम बन सकता है। जब लोग एकजुट होकर सेवा कार्य करते हैं, तो यह समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी और स्नेह को प्रगट करता है, जिससे समग्र रूप से समाज में बदलाव लाया जा सकता है। मानवता का संवर्धन: सेवा सत्संग का मुख्य उद्देश्य दूसरों की मदद करना और उनके दुखों को दूर करना है। यह न केवल समाज में एकता को बढ़ावा देता है, बल्कि यह मानवता की भावना को भी उजागर करता है।

सेवा सत्संग निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करने की प्रेरणा देता है

विशेष रूप से इस युग में जब लोग स्वार्थी हो रहे हैं, सेवा सत्संग हमें निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करने की प्रेरणा देता है। दीन-हीन और पीड़ितों के लिए सहायता: कलियुग में निर्धनता, बेरोजगारी, और सामाजिक असमानता जैसी समस्याएँ प्रचलित हैं। सेवा सत्संग में शामिल होने से हम ऐसे पीड़ितों की मदद कर सकते हैं, चाहे वह शिक्षा का अभाव हो, आर्थिक संकट हो या स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हों। यह दूसरों की सेवा करने के साथ-साथ अपनी आत्मा की भी शुद्धि करता है।

सेवा सत्संग है आध्यात्मिक मार्गदर्शन

इस युग में लोग भटकाव की स्थिति में रहते हैं, और सही मार्ग का चयन करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। सेवा सत्संग में हम साधु-संतों से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं जो हमें जीवन के सही उद्देश्य और आत्म-समझ की ओर मार्गदर्शन करते हैं। यह हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है और हमें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है। सेवा सत्संग में भाग लेने के लाभ:मानसिक शांति: सेवा और सत्संग से मानसिक शांति प्राप्त होती है। जब हम किसी की मदद करते हैं, तो हमें अंदर से संतुष्टि और शांति मिलती है।

सेवा सत्संग से मिलती हैं सकारात्मक ऊर्जा

सत्संग में रहते हुए हमें सकारात्मक विचारों और कार्यों की दिशा मिलती है, जो जीवन को एक नया दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। समाज में योगदान: सेवा के द्वारा हम समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं, जो समाज के लिए लाभकारी होता है। यह न केवल हमारे जीवन को आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत करता है, बल्कि समाज में भी प्रेम और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है। इसलिए, हमें अपने जीवन में सेवा सत्संग को महत्व देना चाहिए और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए, ताकि हम व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर सकारात्मक बदलाव ला सकें।

कलियुग में सत्संग है मुक्ति का मार्ग

कलियुग में, जब इंसान मोह, अहंकार और तात्कालिक सुखों के पीछे भागता है, तब इस युग के आधार को ही मुक्ति के मार्ग के रूप में देखा जाता है। सत्संग, सेवा और नाम जप का मार्ग इस युग में परमात्मा की प्राप्ति का सरल और सशक्त उपाय माना गया है। लेकिन दुर्भाग्यवश, मनुष्य इस अमूल्य नाम रूपी धन को भी अनजाने में खो बैठता है और भटकता रहता है। यही कारण है कि इस युग में अपने कर्मों और व्यवहार पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।

सत्संग में गुरु की भूमिका

सत्संग का वास्तविक उद्देश्य केवल सुनने और देखने तक सीमित नहीं है। यह तभी प्रभावी होता है जब इसे जीवन में आत्मसात किया जाता है और इसे अपने आचरण में उतारा जाता है। सत्संग का प्रभाव तभी महसूस होता है, जब वह हमें जागरूकता, साधना और आत्म-परिवर्तन की दिशा में प्रेरित करता है। अगर हम केवल सत्संग सुनकर उसे अपनी जीवनशैली में लागू नहीं करते, तो वह शारीरिक और मानसिक शांति देने की बजाय एक मात्र समय की बर्बादी बन सकता है। कलियुग के इस कठिन समय में, जब लोग भौतिकता की दौड़ में उलझे हुए हैं, सेवा सत्संग एक आदर्श मार्ग प्रस्तुत करता है।

फ़ूडमैन विशाल सिंह की कलम से

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