लखनऊ। मानवता के प्रतिमूर्ति मोहन सिंह , न्यायल जी ने अपनी पुत्रवधु योगिता सिंह एवं पौत्र आदित्य सिंह सहित अपने पूरे परिवार के साथ अपने स्वर्गीय पुत्र जयपाल सिंह की पुण्यतिथि के अवसर पर विजय श्री फाउंडेशन, प्रसादम सेवा के तत्वाधान में आज के दिन को सेवा दिवस के रूप में मानते हुए लोहिया हॉस्पिटल , लखनऊ में कैंसर एवं असाध्य रोगियों के निःसक्त तिमारदारो की भोजन की सेवा कर दरिद्र नारायण की सेवा के माध्यम से नर सेवा ही नारायण सेवा है, के ध्येय वाक्य को चरितार्थ किया।
साथियों ,सेवा वह है जो किसी दूसरे को सुख देने के लिये निष्प्रह और निष्काम भाव से की जाती है। मन से सबका हित चाहना ही सेवा है। ऐसा तभी सम्भव है जब हम सबमे स्वयं को देखे। “आत्मवत् सर्वभूतेषु “ की भावना से दूसरे का सुख दुःख अपना सुख दुःख हो जाता है। पर की भेद दृष्टि ही नही रहती।
इस अवस्था में हमारी समस्त चेष्टाएँ सेवा रूप हो जाती है और किसी की भी सेवा स्वयं सेवा होती है। यह मनुष्य को आत्मतुष्टि प्रदान करती है। इसमें कृतिमता, दिखावा, आडम्बर या अहंकार आदि के लिये कोई स्थान नही होता है, इस प्रकार की सेवा पूर्णतः निष्काम होती है।
मैं फूडमैन विशाल सिंह पूरे प्रसादम परिवार की तरफ़ से स्वर्गीय जयपाल सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। मित्रों ,जीवन में भूख ही सबसे बड़ा दुख हैं, रोग हैं, तड़प हैं ,इसलिए प्रसाद सेवा के पुण्य कार्य में मोहन सिंह , न्यायल ने प्रतिभाग करते हुए गरीब , असह्य , भूख से तडपतें और करुणा कलित चेहरों पर मुस्कान लाने का जो प्रयास किया है , इसके लिए आपके पूरे परिवार को मेरा कोटि-कोटि वंदन एवं मैं मां अन्नपूर्णा एवं माता लक्ष्मी से प्रार्थना करता हूं कि आप और आपका परिवार हमेशा धन-धान्य से परिपूर्ण रहे , आप इसी तरह से मुस्करातें हुए लोगों की सेवा करे, यही पुण्यों का फिक्स डिपॉज़िट।
निष्काम सेवा का अधिष्ठान यह भावना है कि संसार जगतनियंता की लीलास्थली है जिसमे वह परमप्रभु स्वयं विविधि रूपों में अपने खेल रचता है और स्वयं ही खेलता है ।उस महा प्रभु से साक्षात्कार करने का एक साधन तन, मन, धन, पद, प्रतिष्ठा,मोह, ममता और अहंकार का पूर्ण समर्पण है । तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा की भावना से समस्त सांसारिक व्यवहार परमात्मा के है ,परमात्मा के लिये है ,हम निमित्त मात्र हैं , कठपुतली की भाँति उनके खेल के साधन है ।
[फ़ूडमैन विशाल सिंह]