ज्ञानवापी को लोग दूसरे शब्दों में मस्जिद कहते हैं, लेकिन ज्ञानवापी साक्षात ‘विश्वनाथ’ हैं: सीएम योगी

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में शनिवार को “समरस समाज के निर्माण में नाथपंथ का अवदान” विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन हुआ।

गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में शनिवार को “समरस समाज के निर्माण में नाथपंथ का अवदान” विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन हुआ। इस सेमिनार का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। दो दिवसीय इस समारोह में देश-विदेश से प्रतिभागी भी शामिल रहे। गोरखपुर विश्वविद्यालय और हिंदुस्तानी एकेडमी प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में इस कार्यक्रम का उद्देश्य नाथ पंथ की सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका पर चर्चा करना है। इसके बाद मुख्यमंत्री गोरखनाथ मंदिर में महंत दिग्विजयनाथ की 55वीं और महंत अवेद्यनाथ की 10वीं पुण्यतिथि पर गोरखनाथ मंदिर में श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ भी करेंगे।

इस संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी, अमरकंटक के कुलपति प्रो श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी भी शामिल हुए। इस कार्यक्रम में सीएम योगी ने पुस्तक एवं पत्रिकाओं का विमोचन किया। आपको बता दें कि इस पुस्तक में डॉ पद्मजा सिंह द्वारा लिखित नाथ पंथ का इतिहास तथा महायोगी गुरु श्री गोरखनाथ शोध पीठ की पत्रिका कुंडलिनी शामिल हैं। इस मौके पर दिव्यांगजन कैंटीन का उद्घाटन करने के साथ ही सीएम योगी ने कैंटीन का निरीक्षण भी किया।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि नाथ पंथ की परम्परा किसी का अनादर नहीं, बल्कि सभी का सम्मान करता हैं, जहाँ एक ओर अध्यात्म के मार्ग को प्रशस्त किया तो दूसरी तरफ समाज को अपने साथ जोड़ने का काम किया। आगे सीएम योगी ने कहा कि केंद्र सरकार ने देश को जोड़ने के लिए हिंदी को जिस रूप में देश-दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है, वह अभिनंदनीय है। देश को जोड़ने के लिए हमारी भाषा हिंदी है, अपने स्थानीय भाषा का महत्व दें, सम्मान करें।

प्राचीन ग्रंथों की बात करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आज रामचरितमानस से न केवल आध्यात्मिक बल्कि सामाजिक दृष्टि से उपयोगी साबित हो रही है, इन ग्रंथों से आजीविका के अनेक साधन बने है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को जोड़ने का सामर्थ्य इन पवित्र ग्रंथों में है, जो स्थानीय भाषा में रचे गए है।

सीएम योगी काशी का जिक्र करते हुए कहा कि ज्ञानवापी को आज लोग दूसरे शब्दों में मस्जिद कहते हैं, लेकिन ज्ञानवापी साक्षात ‘विश्वनाथ’ ही हैं।

भारत के उन सभी भाषाओँ का प्रतिनिधित्व बने जो धार्मिक उन्नति से जुड़ा हो या आजीविका का माध्यम हो, ये सभी एक दूसरे के पूरक है। नाथ पंथ के तत्त्व जिस देश में मौजूद है उसे एकत्र करके उसे अपने भाषा हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत में भी कन्वर्ट करके उसे संरक्षित करना चाहिए। इसके अलावा नाथ पंथ के साधना पद्धति को भी कलेक्ट करके म्यूजियम के रूप में प्रदर्शित करना चाहिए। आगे सीएम योगी ने कहा कि संगोष्ठी के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी को पुरातन परम्परा और संस्कृति के बारें में अवगत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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