भूपेंद्र प्रताप सिंह के जन्मदिन पर विनीत बिसेन ने मेडिकल कॉलेज में नि:शक्त तीमारदारों की भोजन सेवा

प्रार्थयामहे भव शतायु: ईश्वर: सदा त्वाम्‌ च रक्षतु।
पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जय जीवनम्‌ तव भवतु सार्थकम्‌।

आज विजय श्री फाउंडेशन, प्रसादम सेवा के संरक्षक श्री विनीत बिसेन जी ने श्री भूपेंद्र प्रताप सिंह जी के जन्म दिन के शुभ अवसर पर मेडिकल कॉलेज, लखनऊ में कैंसर और असाध्य रोगों से पीड़ित करीब 300 मरीजों एवं उनके निःसक्त तीमारदारों को भरपेट स्वादिष्ट भोजन कराया गया। आपने सेवा धर्म की पावन मन्दाकिनी में डुबकी लगाते हुए कैंसर एवं असाध्य रोगियों और उनके निःसक्त तिमारदारो की भोजन सेवा कर दरिद्र नारायण की सेवा के माध्यम से नर सेवा ही नारायण सेवा है, के ध्येय वाक्य को चरितार्थ किया।

इस अवसर पर विजयश्री फाउन्डेशन , प्रसादम सेवा के संस्थापक फ़ूडमैन विशाल सिंह ने बताया कि भूख के समान कोई दुःख नहीं क्षुधा के समान कोई रोग नहीं, अरोग्यता के समान कोई सुख नहीं । इसलिए अन्न दान बहुत पुण्य का कार्य है। अन्न दान करने वाला प्राण दाता होता है। इसलिए हमें अपने जन्म दिन के अवसर पर जिस दिन हमें अपने शरीर में प्राण वायु प्राप्त हुयी , हमने जन्म लिया, उस दिन संकल्प ले कि कोई भूखा न रहे। वास्तव में भूखे को भोजन देना, प्यासे को पानी पिलाना ही सच्ची मानवता है। समाज और संसार में नर सेवा ही नारायण सेवा है। यही पुण्यों का फिक्स डिपोजिट है।

इस अवसर पर श्री विनीत बिसेन जी ने कहा कि “परोपकारः पुण्याय पापाय परिपीडनम” परोपकार से बढ़कर कोई पुण्य नहीं है। सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता, सेवा से प्रकट होता है। सेवा परमात्म तत्व, वरदान, यज्ञ, तप और त्याग है। सेवा से परमतत्व सिद्ध होती है। सेवा का वास तप के मूल में है, अतः यह वरदान है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि ईश्वर की भक्ति भी सेवा भाव से ही होती है। भक्त वत्सल भगवन दीन -हीन लोगों की सेवा से और प्रसन्न होते हैं –

परहित सरिस धर्म नहि भाई ,
पर पीड़ा सम नहि अधमाई।

फ़ूडमैन विशाल सिंह ने श्री भूपेंद्र प्रताप सिंह जी के जन्मदिन के शुभ अवसर पर बधाई एवं शुभ कामना देते हए कहा कि , मैं परमपिता परमात्मा, मां अन्नपूर्णा एवं मां लक्ष्मी से आपके पूरे परिवार की सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य, यश, कीर्ति एवं दीर्घायु की मंगल कामना करता हूं आप सब जीवन में यूं ही मुस्कुराते हुए निःशक्तजनों की मदद कर आनंद की अनुभूति प्राप्त करें यही परमपिता परमात्मा से कामना है ।

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