लखनऊI अपनी प्यारी बहन पूनम सक्स्सेना की पूण्यतिथि पर बहन श्रीमती रजनी सक्सेना एवं पति श्री एवं प्रदीप कुमार सक्सेना द्वारा साईं बाबा के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पण करते हुए विजयश्री फाउन्डेशन के मेडिकल कॉलेज लखनऊ में कैंसर पीड़ित तीमारदारों को भोजन सेवा कर अपनी बहन के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पण कियाI
बहन श्रीमती रजनी सक्सेना एवं पति श्री एवं प्रदीप कुमार सक्सेना जी सेवा विचार व्यक्तित्व की धनी है आपका हमेशा यह प्रयास रहता है इस पुनीत एवं मानवीय सेवा मिशन में अधिक से अधिक लोग जोड़कर सेवा परमो धर्म विचार को आगे बढ़ाएं यह मेरा सौभाग्य है कि आप जैसे बड़े भाई का आशीर्वाद मार्गदर्शन मुझे प्राप्त है।
अपनी प्यारी बहन पूनम सक्स्सेना की पूण्यतिथि के अवसर पर बहन श्रीमती रजनी सक्सेना एवं पति श्री एवं प्रदीप कुमार सक्सेना जी ने अपने पूरे परिवार की तरफ से पूरी श्रद्धा और तन्मयता से लोहिया हॉस्पिटल , लखनऊ में नि:शक्त तीमारदारों की भोजन सेवा कर उन्हे प्रसाद वितरण किया गया। इस अवसर पर आपका पूरा परिवार करुणामय हृदय से नि:शक्त तीमारदारों की भोजन सेवा करते हुए भाव विभोर हो गया, आप लोगो ने “नर सेवा नारायण सेवा” के भाव को वास्तविकता के धरातल पर चरितार्थ किया।
सेवा परमो धर्मा के विचर से अनुप्राणित हो श्रीमति रजनी सक्सेना पति श्री एवं प्रदीप कुमार सक्सेना ने अपने विचारो को व्यक्त करते हुए कहा कि अन्न दान श्रेष्ठ दान इसलिए है, क्योकि अन्न से ही शरीर चलता है। अन्न ही जीवन का आधार है। अन्न प्राण है, इसलिए इसका दान प्राणदान के सामान है।
यह सभी दानो में श्रेष्ठ और ज्यादा फल देने वाला माना गया है। यह धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग भी माना गया है। भोजन सेवा से अभिभूत होकर आप लोगो ने कहा कि जिन वस्तुओं को हम खुद को खिलाने के लिए उपयोग करते हैं.वे ब्रम्हा हैं। भोजन ही ब्रम्हा है। भूख की आग में हम ब्रम्हा महसूस करते हैं और भोजन खाने और पचाने की क्रिया ब्रम्हा की क्रिया है। अंत में प्राप्त परिणाम ब्रम्हा है। अतः नर सेवा ही नारायण सेवा है।
इस अवसर पर विजयश्री फाउन्डेशन , प्रसादम सेवा के संस्थापक फ़ूडमैन विशाल सिंह ने पूनम सक्स्सेना की पूण्यतिथि जी की पुण्य आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि, निष्काम सेवा के इस कंटकाकीर्ण मार्ग पर कोई विरला व्यक्ति ही चल सकता है ,और प्रभु के इस मार्ग पर जो चलता है वह व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व बन जाता है ।
निष्काम सेवा का अधिष्ठान यह भावना है कि संसार जगतनियंता की लीलास्थली है जिसमे वह परमप्रभु स्वयं विविधि रूपों में अपने खेल रचता है और स्वयं ही खेलता है ।उस महा प्रभु से साक्षात्कार करने का एक साधन तन, मन, धन, पद, प्रतिष्ठा,मोह, ममता और अहंकार का पूर्ण समर्पण है ।
तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा की भावना से समस्त सांसारिक व्यवहार परमात्मा के है ,परमात्मा के लिये है ,हम निमित्त मात्र हैं , कठपुतली की भाँति उनके खेल के साधन है । वास्तव में भूखे को भोजन देना, प्यासे को पानी पिलाना ही सच्ची मानवता है । समाज और संसार में नर सेवा ही नारायण सेवा है । यही पुण्यों का फिक्स डिपोजिट है ।