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समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता की मांग पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को करेगा सुनवाई

केंद्र सरकार ने हलफनामें में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का किया विरोध

समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को सुनवाई करेगा. ये मामला मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की बेंच सुनेगी.

इससे पहले शीर्ष अदालत ने 6 जनवरी को दिल्ली हाई कोर्ट सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित इससे जुड़ी सभी याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया था.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामें में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध किया है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हलफनामे में केंद्र ने तर्क दिया है कि आईपीसी की धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर करने से समलैंगिक विवाह के लिए मान्यता मांगने के दावा मजबूत नहीं होता.

इसके साथ ही केंद्र सरकार ने ये भी कहा कि मान्यता न मिलने के बावजूद इस तरह के संबंध गैरकानूनी नहीं हैं. केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को प्रकृति के खिलाफ बताते हुए कहा कि इतिहास में अलग सेक्स के लोगों की शादी ही आदर्श के रूप में देखी गयी है.

केंद्र ने कहा कि सामाजिक महत्व को देखते हुए राज्य महिला और पुरुष की शादी को ही मान्यता देने का इच्छुक है. इसके अलावा दूसरी किसी भी शादी को मान्यता नहीं मिलनी चाहिए.

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जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने समाज की वर्तमान स्थिति के हवाले स कहा कि इस समय समाज में विभिन्न किस्म की शादियां, या फिर संबंधों की आपसी समझ है.

फिर भी हम सिर्फ हेट्रोसेक्सुअल फॉर्म को ही मान्यता देने में रुचि रखते हैं, हलफनामे के अनुसार राज्य किसी भी अन्य तरह की शादियों, संबंधों या व्यक्तियों के बीच की निजी समझ को मान्यता देने के पक्ष में नहीं है लेकिन ये गैरकानूनी नहीं है.

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