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वारली आदिवासी समाज को आगे बढ़ाने के लिये कैसेंड्रा ने ऐसी बनाई राह 

आरे जंगल के बीच 13 गांवों में रहते है वारली आदिवासी समाज के लोग

जंगल में रहने वाले आदिवासियों का हाल कुछ ऐसा होता है कि उन्हें जीवनयापन के लिए बुनियादी सुविधाओ की कमी का सामना करना पड़ता है।

कुछ ऐसी ही दास्तान है महाराष्ट्र के वारली आदिवासी समाज के हज़ारों परिवारों की, जिनकी जिंदगी की दिशा बदलने में मुंबई की कैसेंड्रा नाज़रेथ की मेहनत व लगन ने काफी अहम् भूमिका अदा की है।

कैसेंड्रा अपनी टीम के साथ पिछले छह साल से आरे जंगल के  पास के 13 गांवों में रहने वाले वारली आदिवासियों के 2,500 परिवारों और मड आइलैंड के चार गांवो के ऐसे 1,200 परिवारों को सहारा दे रही है जो  जंगल के बीच थोड़ी सी ज़मीन और बिल्कुल कम साधनों के साथ रहते है लेकिन इनके पास काफी बेहतरीन विरासत है।

कैसेंड्रा ने  अपनी संस्था नाज़रेथ फाउंडेशन के सहारे #TRibalLunch नाम का एक कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने इनकी कला और संस्कृति के जरिये इनके आगे बढ़ने की राह तलाशी।

फोटो : साभार गूगल

इस प्रोजेक्ट से मुंबईकरों को आरे जंगल में रहने वाली  महिलाओं के पकाए पारंपरिक खाने का स्वाद मिलने लगा और फिर उन्होंने एक के बाद कई और कार्यक्रमों को भी शुरू किया।

फ़िलहाल क्राउड फंडिंग से वारली आदिवासी  महिलाओं के लिए कैंप का इंतजाम कर रही कैसंड्रा की टीम ने  महिलाओं और बच्चियों  के जीवन में बड़े पैमाने पर बदलाव की पहल की और #SurekhaMenstrualCupProject शुरू किया जीसे 2,500 से ज्यादा परिवारों के लिए मेंस्ट्रुअल हाइजीन की व्यवस्था की गई।

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उन्होंने इन महिलाओं को खाना पकाने के लिए धुआं रहित गैस स्टोव भी दिए। कैसेंड्रा की ये सोच है कि  वारली आदिवासी महिलाओ की प्रोडक्ट्स बेचने के लिए पूरी तरह से आत्मनिर्भरता नहीं मिलती तब तक इस  समाज का विकास नहीं हो पायेगा।

फोटो : साभार गूगल

उनकी टीम इस मकसद की दिशा में मेडिकल कैंप, साक्षरता और कंप्यूटर ज्ञान के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम तक का संचालन करती है। कैसेंड्रा ने वारली आदिवासी समाज के गांवो में 45 बायोटॉयलेट, 11 घरेलू आटा चक्कियां और सिलाई मशीन की  सुविधाओ को भी मुहैया कराया है।

बताते चले कि मुंबई की रहनेवाली कैसेंड्रा नाज़रेथ ने बताया था कि आज से लगभग  छह साल पहले शहर के आस-पास पेड़ों को बचाने के लिए आरे जंगल जंगल के बीच वारली आदिवासियों के कई गांवों की तलाश की और शहर के करीब होने के बावजूद ये गांव विकास की दौड़ में काफी पिछड़ गए थे।

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