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किसी फिल्म से कम नहीं है बुसरा खान की कहानी, फिर भी नहीं मानी हार

कुछ महीनों पहले फैक्टरी ब्लास्ट में पिता चल बसे, घर का सामना तक बिक गया। इसके बाद भी उन्होंने मेहनत जारी रखी और गोल्ड जीता।

भोपाल । कहते है किसी भी कार्य की सार्थकता के लिए मेहनत बेहद ही जरूरी हैI बिना लगन के किया गया कार्य सफल नहीं होताI इंसान को लाइफ में कभी भी किसी प्रकार का कोई शॉर्ट कट नहीं अपनाना चाहिए, क्याेंकि इस प्रकार किया गया कार्य अधिक समय तक सफलता नहीं देता, लोग कई बार ये सोचकर आगे बढ़ते कि शायद किस्मत उनका साथ देगीI पर यकीन मानिये किस्मत भी उन्ही का साथ देती है जो कड़ी मेहनत करना जानते हैI आपके जीवन में किया गया कठिन परिश्रम ही आपको सफलता के चरण तक पहुंचाता है। यह सभी बाते मध्य प्रदेश के सीहोर की एथलीट 17 साल की गोल्ड मेडलिस्ट बुसरा खान पर भी लागू होती है।

खेलो इंडिया यूथ गेम्स की 3000 मीटर दौड़ स्पर्धा में 17 साल की बुसरा खान ने गोल्ड मेडल जीता। मध्य प्रदेश के सीहोर की एथलीट ने 10.04.29 मिनट का समय लेकर पहला स्थान हासिल किया। कॉम्पिटिशन से पहले पैर में इंजरी थी, लेकिन वह 10 हजार रुपए की इंस्पिरेशन लेकर दौड़ीं और मेडल जीतकर मानीं।

खेलो इंडिया यूथ गेम्स की 3000 मीटर दौड़ स्पर्धा में 17 साल की बुसरा खान ने गोल्ड मेडल जीता

यहां तक का सफर बुसरा के लिए आसान नहीं था। कुछ महीनों पहले फैक्टरी ब्लास्ट में पिता चल बसे। घर का सामना तक बिक गया। इसके बाद भी उन्होंने मेहनत जारी रखी और गोल्ड जीता। खेलो इंडिया गेम्स इस वक्त मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल समेत राज्य के अलग-अलग शहरों में हो रहे हैं। भास्कर की टीम इन शहरों में जाकर एथलीट्स की इंस्पिरेशनल स्टोरी अपने रीडर्स के लिए ला रही है।

बुसरा बताती हैं कि’2016 में 12 साल की उम्र में मैं भोपाल की एथलेटिक्स एकेडमी में सलेक्ट हुई। यहां कोच एसके प्रसाद की निगरानी में प्रैक्टिस की। स्टेट लेवल पर मेहनत की और नेशनल लेवल पर सलेक्ट हुई। गोल्ड जीतने का सपना था, 2023 में वह पूरा हुआ। इससे पहले 2019 में कांस्य पदक जीता था।

बुसरा ने बताया,मुझे दौड़ना अच्छा लगता है, बचपन से ही दौड़ने का शौक था। अब्बू छोटी बहनों के साथ सीहोर के ग्राउंड ले जाते थे। जब तक वो थे, तब तक सब ठीक था। लेकिन, उनके चले जाने के बाद परेशानियां बढ़ गईं।

बुसरा ने कहा,’पिछले साल मई में सीहोर की केमिकल फैक्ट्री ब्लास्ट में पिता का देहांत हो गया। फैक्ट्री में मजदूरों के लिए मकान बने हैं। वहीं, मेरा पूरा परिवार रहता था। ब्लास्ट के समय पिता फैक्ट्री की वर्कशॉप में काम कर रहे थे। मां और छोटी बहनें घर में थीं। जब ये खबर पता चली तब मैं एकेडमी में ही थी।

मां शहनाज खान व दोनों छोटी बहनों के साथ बुसरा खान

बुसरा की मां शहनाज खान ने बताया चले जाने के बाद घर का सारा सामान बिक गया। राशन भी दूसरों की मेहरबानी से आने लगा। फैक्ट्री में बना क्वार्टर तक छोड़ना पड़ गया। बुसरा एकेडमी में है लेकिन छोटी बहनों ने ग्राउंड जाना छोड़ दिया। बुसरा ने बताया,मां अब दोनों बहनों के साथ किराए के मकान में रहती हैं। पिता को मिले मुआवजे से घर का किराया जाता है। सरकार ने अब हम तीनों बहनों की पढ़ाई फ्री कर दी है। मैं कॉलेज में हूं, छोटी बहन दरख्शा नौवीं में और आरिया सातवीं कक्षा में है।

वह बोलीं कि कोच सर कभी-कभी मदद कर देते हैं। वह राशन दिलवाते हैं। कई बार जिला प्रशासन से भी मदद मिल जाती है। बुसरा भोपाल स्थित एकेडमी में ही रहती हैं। जहां उन्हें बेसिक सुविधाओं के साथ दौड़ने के लिए हर तरह की फेसिलिटी अवेलेबल है। मां का सपना है कि बेटी देश के लिए मेडल जीते। उन्होंने बताया कि बेटी कॉम्पिटिशन में इनाम के पैसे भी उन्हें दे देती है ताकि घर की जरूरतें पूरी हो सके।

मां ने बताया कि कॉम्पिटिशन से पहले बेटी के बाएं पैर में चोट थी। लेकिन, 10 हजार रुपए जीतने के लिए वह दौड़ी और मेडल जीतकर मानी। दरअसल, MP सरकार खेलो इंडिया यूथ गेम्स में गोल्ड जीतने वाले एथलीट्स को स्कॉलरशिप और जेब खर्च के लिए 10 हजार रुपए देती है।

इन पैसों से बुसरा अपने परिवार की आर्थिक जरूरतें पूरी करती हैं। बुसरा ने बताया कि रेस से पहले वह काफी नर्वस थीं। लेकिन कोच सर ने हौसला अफजाई की। रेस के दौरान वो लगातार मुझे गाइड कर रहे थे। जीत के बाद बुसरा इमोशनल होकर बोलीं, ‘मेडल मेरे लिए काफी अहम है। पिता यहां होते तो ज्यादा खुश होते। ये मेडल उन्हीं के लिए है

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