लखनऊ: उत्तर प्रदेश में बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों ने प्रदेश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। महाकुंभ 2025 से पहले बिजली विभाग के निजीकरण के विरोध में प्रदेश के हजारों कर्मचारियों ने नए साल को “काला दिवस” के रूप में मनाते हुए व्यापक प्रदर्शन किया।
लखनऊ स्थित शक्ति भवन मुख्यालय और मध्यांचल विद्युत वितरण निगम कार्यालय समेत वाराणसी, प्रयागराज, कानपुर, आगरा, मेरठ, गोरखपुर और झांसी जैसे प्रमुख शहरों में इंजीनियरों और संविदा कर्मचारियों ने काली पट्टियाँ पहनकर मानव श्रृंखला बनाई।
प्रमुख मांगें और विरोध के कारण
- पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के प्रस्तावित निजीकरण को रद्द करने की मांग।
- निजीकरण से संभावित नौकरियों के खतरे और उपभोक्ता पर आर्थिक बोझ बढ़ने की आशंका।
- कर्मचारियों का कहना है कि सरकारी नियंत्रण कमजोर होने से विद्युत आपूर्ति की गुणवत्ता प्रभावित होगी।
यूपी विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा, “हम निजीकरण के खिलाफ हैं और यह प्रदर्शन तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार इस योजना को वापस नहीं लेती। 5 जनवरी को प्रयागराज में एक ‘बिजली पंचायत’ का आयोजन होगा, जिसमें राज्यभर से कर्मचारी हिस्सा लेंगे।
प्रदर्शनकारियों ने प्रबंध निदेशकों का बहिष्कार करते हुए नववर्ष की शुभकामनाएँ देने से इनकार कर दिया। लखनऊ में बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी शक्ति भवन पर जुटे और सरकार के खिलाफ नाराजगी व्यक्त की।
सरकार के सामने चुनौती
महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन से पहले यह प्रदर्शन सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। बिजली कर्मचारियों का कहना है कि यदि उनकी मांगों को अनसुना किया गया, तो वे आंदोलन को और अधिक तीव्र करेंगे।
प्रयागराज में 5 जनवरी को आयोजित होने वाली बिजली पंचायत इस आंदोलन का निर्णायक कदम हो सकती है। इस पंचायत में आंदोलन की आगे की रणनीति तय की जाएगी।सरकार और कर्मचारियों के बीच गतिरोध यदि समय पर समाप्त नहीं हुआ, तो इसका असर महाकुंभ की तैयारियों और प्रदेश की बिजली आपूर्ति व्यवस्था पर पड़ सकता है।